राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि “भारत गांव में बसता है” लेकिन बीते कई वर्षों से देवभूमि यानि उत्तराखंड के गांव पलायन का शिकार हो रहे हैं।
इस राज्य के गांवों की स्थिति इतनी बदतर हो गई है, कि गांव के गांव खंडहर में तब्दील हो गए हैं। उत्तराखंड के गांवों से लोग खासकर युवा तरुनाई अन्य राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं।
जिसका प्रमुख कारण है…देवभूमि में बढ़ती प्राकृतिक आपदाएं, खेती के अनुपयुक्त जलवायु और पहाड़ी जनजीवन और लोगों के प्रति सरकारों का उदासीन रवैया।
हालांकि ऐसा नहीं है कि देवभूमि में सरकार मैदानी क्षेत्रों की तरह विकास कार्यों को बेहतर ढंग से अंजाम नहीं दे सकती है, इसका जीता जागता उदाहरण है हिमाचल प्रदेश।
लेकिन उत्तराखंड में इसी के विपरित कार्य व्यवस्था और परिस्थितियों के चलते आज यहां के अनेक शहरों और गांव की दशा काफी शोचनीय हो गई है।
ऐसे में हमारे आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको उत्तराखंड के खंडहर हो रहे गांवों के पीछे का कारण बताएंगे। साथ ही उत्तराखंड के उन गांवों के बारे में भी बताएंगे, जहां आबादी के नाम पर केवल दो या तीन बुजुर्ग ही जीवनयापन कर रहे हैं।
जिनके आधार पर आप पहाड़ी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के जीवन संघर्षों को काफी करीब से समझ पाएंगे। उत्तराखंड के गांवों में पलायन तो काफी समय से जारी है, लेकिन इस गंभीर स्थिति पर सबकी नजर तब पड़ी।
जब विधानसभा चुनावों 2022 में मतगणना के दौरान यह बात सामने आई कि देवभूमि के कई गांवों में युवा मतदाता ही नहीं हैं। जबकि अधिकांश गांवों में केवल बुजुर्ग आबादी ही निवास कर रही है। जिसके पीछे कई कारण हैं, जिन पर आगे हम चर्चा करेंगे।
उत्तराखंड के गांवों से लोगों के पलायन का क्या है मुख्य कारण?
जैसा कि आप जानते हैं कि उत्तराखंड सम्पूर्ण भारत में अपनी संस्कृति और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। देवभूमि के पर्वतीय इलाके और बदलती भौगोलिक परिस्थितियां विदेशों और देश के ही भीतर अन्य राज्यों से आने वाले पर्यटकों का मन तो मोह लेती हैं।
लेकिन उत्तराखंड के स्थानीय निवासियों के लिए यहां यानि पहाड़ों पर जीवन बसर करना मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि साल दर साल उत्तराखंड से हजारों लाखों लोग पलायन कर रहे हैं।
जिनमें से सबसे अधिक लोग देवभूमि के पौड़ी गढ़वाल, उत्तरकाशी और टिहरी से अन्य राज्यों में जाकर बस चुके हैं। एक सर्वे के अनुसार, जहां उत्तराखंड के गावों से 70 प्रतिशत आबादी अन्य राज्यों या शहरों में जा चुकी है, तो वहीं उत्तराखंड के 29 प्रतिशत शहरों से भी लोग दूसरे राज्यों में जाकर बस गए हैं।
जिसके पीछे मुख्य वजह है, शिक्षा और रोजगार। ऐसे में आने वाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के चलते उत्तराखंड के अधिकांश शहरी और ग्रामीण लोगों ने पहाड़ी इलाके को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों में बसने का निर्णय लिया है।
जबकि देवभूमि की अधिकतर आबादी रोजगार और भविष्य की बेहतर संभावनाओं की तलाश में यहां से लगातार पलायन कर रही है।
स्थानीय निवासियों की मानें तो उत्तराखंड के अधिकतर शहरों या गांव में शिक्षा, रोजगार, इलाज और खेती के लिए उपयुक्त जमीं समेत मूलभूत सुविधाओं का अभाव होना पलायन का मुख्य कारण है। जबकि पहाड़ी इलाकों में सड़कों का निर्माण भी एक गंभीर मुद्दा है।
सड़कों की मरम्मत और निर्माण कार्य में देरी की वजह से देवभूमि के कई गांवों की जनसंख्या तो पानी की एक-एक बूंद के लिए तक तरस जाती है। यहां कई शहरों और गांवों में इलाज की बेहतर सुविधाएं मौजूद नहीं है।
जलवायु परिवर्तन के चलते यहां बिन मौसम होने वाली बरसात खेती के लिए अनुकूल नहीं है। तो वहीं बची कसर, जानवर पूरी कर देते हैं, यानि खेतों में फसलों को जानवर काफी नुकसान पहुंचाते हैं, जिस कारण मुनाफा भी नुकसान में ही तब्दील हो जाता है।
देवभूमि में हर साल बाढ़, बारिश, तूफान, चक्रवात, भूकंप समेत अन्य प्राकृतिक आपदाओं के चलते यहां के निवासी परिवार संग मैदानी इलाकों का रुख कर रहे हैं।
पहाड़ी इलाकों में समय से सरकारी मदद या विकास कार्यों की धीमी गति भी आम जनजीवन को प्रभावित कर रही है। इतना ही नहीं, आधुनिक तकनीक के इस युग में पहाड़ी इलाकों में नेटवर्क की दिक्कतों के चलते भी स्थानीय लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है।
यही कारण है कि लोग यहां से दूसरे राज्यों में बेहतर जिंदगी की आस में तेजी से पलायन कर रहे हैं। जिसको देखते हुए ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देवभूमि के 1000 से अधिक गांव आबादी के अभाव में खंडहर में बदल चुके हैं।
जबकि आगे अगर स्थिति ऐसी ही रही, तो वह दिन दूर नहीं कि धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस राज्य के कई इलाके हमेशा के लिए वीरान हो जाएंगे।
उत्तराखंड के ये गांव अब हो चुके हैं खंडहर
देवभूमि के पौड़ी गढ़वाल स्थित कुईं, गडोली नामक गांव अधिकांश तौर पर खंडहर में बदल चुके हैं, जबकि इसके आसपास के क्षेत्र भी वीरान पड़े हैं। गडोली गांव में ही जनसंख्या के नाम पर केवल तीन बुजुर्ग महिलाएं रह रही हैं।
देवभूमि स्थित नौलू गांव के अधिकतर ग्रामीण भी अन्य राज्यों के शहरों में जाकर बस गए हैं। बात करें भरतपुर गांव की, तो यहां केवल एक ही परिवार रह रहा है, जबकि अन्य सारे घर देखरेख के अभाव में खंडहर में बदल गए हैं।
यही हाल अल्मोड़ा जिले के कई गांवों का हो चुका है, जहां आबादी के नाम पर केवल वीरान घर और अधिकतर परिवारों में बुजुर्ग व्यक्ति देखने को मिलते हैं।
जिनमें एक नाम है ल्वाली गांव का, जहां एक भी युवा व्यक्ति मौजूद नहीं है। इसके अलावा, देवभूमि में दो जगहें हैं, जिनमें एक को वीरों मल्ला और दूसरे को वीरों तल्ला के नाम से जाना जाता है। यहां से भी अधिकांश परिवार पलायन कर चुके हैं। जिस कारण देवभूमि के गांवों को घोस्ट विलेज कहा जाने लगा है।
इस प्रकार, अगर वर्तमान सरकारें देवभूमि के जनजीवन से जुड़े हालातों को लेकर जल्द कोई फैसला नहीं लेंगी, या विकास संबंधी बागडोर को ठीक तरह से नहीं संभालेंगी, तो देवभूमि पर इंसानों की बस्तियां हमेशा के लिए सुनसान हो जाएंगी।