देवभूमी उत्तराखंड में निरंतर बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं चिंता का सबब बनी हुई हैं.
इस बात की गवाही लगातर बढ़ते सड़क हादसों के आंकड़े खुद दे रहे हैं.
ज़ाहिर है अगर साल दर साल हादसों की संख्या बढ़ रही है तो अब वो वक्त है जब बातें नहीं बल्कि ज़मीनी तौर पर काम करने की आवश्यकता है.
वहीं उत्तराखंड की सड़क दुर्घटनाओं के आगे सिस्टम दम तोड़ता दिखाई दे रहा है.
जाहिर है कि लंबे समय से हो रही दुर्घटनाओं के बावजूद अगर संज्ञान नहीं लिया गया तो ये दिखाता है कि आखिर सुरक्षा के तमाम दावे कितने सही हैं. वही कुछ ऐसी बड़ी वजह है जिससे सड़क हादसे आम होते जा रहे हैं.
पांच बड़ी वजह
- ओवरलोडिंग
- वाहन की फिटनेस न होना
- तेज रफ्तार
- चालक की लापरवाही
- पैराफिट का न होना
वैसे तो सड़क दुर्घटनाओं के कई कारण है लेकिन कुछ ऐसे कारण है जिन से आए दिन लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है.
आपको बता दें पर्वतीय मार्गों पर कई ऐसे अंधे मोड़ है जिनसे सामने से आ रहा कोई वाहन तक नजर नहीं आता.
साथ ही जहां सड़क के एक तरफ पहाड़ है तो दूसरी तरफ खाई यानी एक चूक बहुत भारी पड़ सकती है.
ये सब देखते हुए ही पर्वतीय मार्गों पर सड़क किनारे पैराफिट लगाए जाते हैं.
वहीं जहां पैराफिट नहीं हैं, वहां क्रैश बैरियर लगाने का प्रावधान है.
इसके पीछे का कारण यही है कि वाहन का संतुलन बिगड़ने की स्थिति में वो पैराफिट या क्रैश बैरियर से टकराकर रुक जाए.
वही एक स्थिति यह भी है जब वाहनों की गति में नियंत्रण ना हो या ओवरलोडिंग पर अंकुश ना हो.
आपको बता दें कि यूं तो सड़क हादसे के मामले को लेकर सुरक्षा के तमाम अभियान की औपचारिकताएं की जाती है परंतु जमीनी हकीकत में स्थिति जस की तस ही रहती है.
यह बात हैरत में डालती है कि जब केंद्र और राज्य सरकारों से लेकर अदालत भी सड़क दुर्घटनाओं को लेकर गंभीर है तो आखिर इन हादसों में कमी क्यों नहीं आ रही?
साथ ही प्रयास भी सामने दिखाई क्यों नहीं दे रहे? इसके अलावा हादसों में लगातार बढ़ती संख्या कुछ और ही बयां कर रही है.
सड़क हादसों और मृतकों की संख्या
वर्ष | दुर्घटनाओं की संख्या | मृतकों की संख्या |
2016 | 1591 | 962 |
2017 | 1603 | 942 |
2018 | 1468 | 1047 |
2019 | 1353 | 886 |
2020 | 1041 | 674 |
2021 | 876 | 517 |
कुल | 7932 | 5028 |
पांच साल में सात हजार दुर्घटनाएं, 4511 मौतें
बीते कुछ सालों के सड़क दुर्घटना के आंकड़े सुरक्षा के तमाम दावों पर प्रश्न चिन्ह लगाते दिखाई दे रहे है.
आपको बता दें कि शायद ही कोई ऐसा महीना हो जब ऐसे हादसे ना हो रहे हो.
वहीं अगर राज्य की ग्रामीण सड़कों की बात करें तो वो बेहद घातक और जानलेवा साबित हो रही हैं.
वहीं परिवहन विभाग के आंकड़ों साफ़ जाहिर कर रहे हैं कि पिछले करीब 6 सालों में सितंबर महीने तक उत्तराखंड में करीब 7993 हादसे हो चुके हैं जिसमें करीब 5028 लोग अपनी जान गवा चुके हैं.
आपको बता दें कि जब 5 सालों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो पता चला कि देवभूमि उत्तराखंड में हर वर्ष औसतन 1322 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं जिसमें 838 लोग मारे जाते हैं.
निश्चित ही ये आंकड़े चौकाने वाले हैं.
जानकारी के अनुसार सड़क दुर्घटना में सबसे ज्यादा जान गवाने वाले लोगों में 15 से 29 साल के युवा शामिल हैं. ये आंकड़ा किसी को भी हैरान कर सकता है.
अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की बात करें तो सड़क दुर्घटना को लेकर कुछ निर्देश दिए हैं.
इन निर्देशों के द्वारा सड़क दुर्घटना से जुड़े कानून को मजबूत करना, स्पीड को मैनेज करना और सड़क निर्माण में सुरक्षा का ध्यान रखना जैसे उपाय शामिल है.
एक और आंकड़े की बात करें तो उसमें ये देखा गया कि 16 बच्चे हर रोज सड़क दुर्घटना में मारे जा जाते हैं.
आपको बता दें सड़क दुर्घटना में 25% लोग मौत के शिकार हो जाते हैं यानि वो मौके पर ही दम तोड़ देते हैं.
एक बड़ी लापरवाही ये है कि भारत में ट्रांसपोर्ट प्लानिंग और डिजाइन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता.
बजाय उसके ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि सड़क निर्माण किस तरह की जाए.
आपको बता दें कि करीब 4 साल पहले एक सर्वे में यह बात सामने आई थी कि प्रदेश में लगभग 12300 किलोमीटर की लंबी सड़के हैं
जिनमें से 4600 किलोमीटर में क्रैश बैरियर लगाने की आवश्यकता है लेकिन इस पर सिस्टम का हाल कुछ यूं है कि अभी तक कुछ 2800 किलोमीटर सड़क पर ही बैरियर लग पाए हैं.
जाहिर है इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सिस्टम कितना सुस्त है. इसीलिए पूरी तरह सिस्टम पर आश्रित रहने के बजाय आपको इन हादसों से स्वयं को बचाना चाहिए.
सड़क दुर्घटनाओं से खुद को ऐसे बचाएं
अगर आप कार्य दो पहिया वाहन से यात्रा करते हैं तो अपनी गाड़ी की गति नियंत्रण में रखें.
इससे अगर अचानक आपके वाहन के आगे कोई व्यक्ति या जानवर आ जाता है तो आप हाथ से से बच सकते हैं.
याद रखें शराब पीकर या नशा करके वाहन बिल्कुल ना चलाएं. ये आपके लिए घातक साबित हो सकता है.
वही करीब 60% हाथ से वाहन चलाते वक्त नींद आ जाने की वजह से होते हैं. यदि आप रात के समय में सफर करते हैं.
तो ड्राइवर से बात करते रहें ताकि उसे नींद ना आए और आप किसी भी हादसे से बचे रहें.
सबसे ज्यादा सावधानी आपको यू टर्न लेते हुए या गाड़ी मोड़ पर लेते हुए रखनी है. साथ ही मुड़ते वक्त दाएं बाएं भी देख लें.
अगर आप रात के समय इस यात्रा पर जा रहे हैं तो बिखर का प्रयोग करना ना भूलें.
साथ ही जब भी ओवरटेक करें तो हमेशा सीधी साइड से ही करें. जिससे कोई हादसा होने की गुंजाइश ना रहे.
जब भी आप ट्रक या किसी ओवरलोड वाहन के पास से गुजरे तो हमेशा और उनका प्रयोग करें.
भीड़भाड़ वाले रास्तों पर अपने वाहन की गति धीमी रखें. उसका कारण यह है जहां भीड़ ज्यादा होती है वहां जरा सी चूक भारी पड़ सकती है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि सभी ट्रैफिक नियमों का पालन करें क्योंकि जाहिर है कि ये नियम हमारी सुरक्षा के लिए ही बनाए गए हैं. इसलिए इन्हें अनदेखा ना करें.
गौरतलब है कि कई बार कुछ सड़क हादसे हमारी लापरवाही के चलते भी होते हैं तो उन्हें नजरअंदाज करना भी सही नहीं है.
सिस्टम पर पूरी तरह निर्भर ना रहकर हमें अपने और अपने परिवार के विषय में भी सोचना चाहिए.
इसीलिए ऐसे पर्वतीय इलाकों पर यात्रा करते समय सावधानी बरतें- गति धीमी रखें और ओवरटेक करने से बचें. इसमें अगर सिस्टम से लेकर जनमानस सतर्क रहें तो दुर्घटनाओं में लगाम लगाने में सहायता मिलेगी.
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