dobra chanti bridge

Dobra Chanthi Bridge | जानिए भारत के सबसे लंबे सस्पेशन पुल ‘डोबरा चांटी पुल’ के बारे में

भारत देश के उत्तराखंड राज्य में पुल किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए बहुत अधिक मायने रखता है। जिस तरह से टिहरी बांध के निर्माण से पूरे देश को फायदा हुआ ठीक उसी प्रकार इस डोबरा चांठी पुल की सहायता से न जाने कितने राज्यों को बिजली मिल रही है।

अभी तक जिस स्थान पर जाने के लिए यहां के निवासियों को सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी वही दूरी अब इस पुल के निर्माण के पश्चात आधी से भी कम रह गई है।

साल 2005 में टिहरी बांध की झील के बनने की वजह से प्रतापनगर में आने जाने का रास्ता बंद हो गया था, जिस कारण लोगों को वहां जाने के लिए बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।

इस कारण लंबगांव, ओखलाखाल से लेकर कांग्रेस मुख्यालय देहरादून में यहां के लोगों ने लंबे समय तक के लिए धरना प्रदर्शन किया। इतने अधिक लोगों के एक जुट होने से भारी जन दबाव के कारण तत्कालीन मुख्य मंत्री ने इस पुल के निर्माण की स्वीकृति दे दी।

डोबरा चांठी भारत देश के उत्तराखंड राज्य में विश्व प्रसिद्ध टिहरी झील पर बना सबसे बड़ा सिंगल लेन सस्पेंशन ब्रिज है। टिहरी झील में विश्व का पांचवा सबसे ऊंचा एवं भारत का सबसे ऊंचा बांध बना हुआ है। इस कारण से ये एक पर्यटन स्थल भी है।

इसी में अब भारत का सबसे लंबा मोटरेबल ब्रिज भी बनकर तैयार हो गया है। ये ब्रिज उत्तराखंड में आकर्षण का एक बहुत बड़ा केंद्र बन गया है। इस ब्रिज ने टिहरी झील की सुंदरता में और चार चांद लगा दिए हैं। ये ब्रिज डोबरा और चांठी नामक दो स्थानों को आपस में जोड़ता है। 

ब्रिज की कुल लंबाई लगभग 725 मीटर है। इसमें सस्पेंशन ब्रिज केवल 440 मीटर लंबा है, जबकि 260 मीटर आरसीसी डोबरा क्षेत्र की ओर एवं 25 मीटर स्टील गार्डर चांठी की ओर है। इस पर तकरीबन 15 टन वजनी वाहन आराम से गुजर सकते हैं। इस पुल से टिहरी झील का दृश्य देखते ही बनता है।

प्रतापनगर, लंबगांव, और धौंतरी में रहने वाली लगभग तीन लाख से अधिक की आबादी को टिहरी जिला मुख्यालय तक आने के लिए 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी लेकिन अब इस पुल के शुरू होने के बाद ये दूरी घटकर आधी रह गई है।

डोबरा चांठी ब्रिज लगभग 14 वर्ष बाद बनकर तैयार हो पाया है। जिसकी एक वजह ये भी है कि कई कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट को लेने से मना कर दिया था। इसके पश्चात वर्ष 2016 में एक साउथ कोरियन कंपनी इस ब्रिज के निर्माण के लिए आगे आयी।

अर्थात एक साउथ कोरियन कंपनी ने इस ब्रिज के निर्माण का जिम्मा उठाया और मात्र चार सालों में ही ये डोबरा चांठी सस्पेंशन ब्रिज बनकर तैयार हो गया। दक्षिण कोरिया की टेक्नोलॉजी की सहायता से लगभग 150 करोड़ रुपए की लागत से ये सस्पेंशन ब्रिज बनकर तैयार हुआ है।

ये ब्रिज कई वर्षों से प्रतापनगर, लंबगांव, और धौंतरी के निवासियों का सपना रहा है। आखिरकार 14 वर्षों के लंबे इंतजार के पश्चात 40 गांव की 45 हजार आबादी को इस पुल के बनने से बहुत बड़ी राहत मिली है।

अब यहां के हजारों लोगों का सपना पूर्ण हुआ। आपको बता दें कि डोबरा चांठी सस्पेंशन ब्रिज के नि नर्माण कार्य की शुरुआत वर्ष 2006 में हुई थी। परंतु इसके कार्य के दौरान ही बहुत सी समस्याएं होने लगी।

कमजोर प्लानिंग और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण 2010 मे इसका कार्य रोक दिया गया था। मात्र 2006 से 2010 तक ही लगभग 1.35 अरब खर्च हो चुके थे। इसके बाद  लोक निर्माण विभाग ने 2016 में 1.35 अरब की लागत से इस पुल का निर्माण कार्य पुनः शुरू करने का निर्णय लिया।

Dobra Chanthi Bridge View In Night

इस पुल की डिजाइन के लिए अंतर्राष्ट्रीय टेंडर निकाला गया। कई कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट से अपना हाथ पीछे कर लिया। फिर साउथ कोरिया की एक कंपनी योसीन को ये टेंडर मिला। कंपनी ने जल्द से जल्द इस पुल का नया डिज़ाइन तैयार किया और फिर तेज़ी से इस पुल के निर्माण का कार्य आरंभ हुआ

इसके पुल के निर्माण में वर्ष 2018 में पुनः एक बार व्यवधान पड़ा, जब इस पुल के तीन सस्पेंडर अचानक से टूट गए थे। अनेकों मुश्किलों के पश्चात 2020 में ये पूरी तरह से बनकर तैयार हो चुका है।

हम सभी जानते हैं कि पहाड़ों पर चलने वाली हवाओं की गति बहुत अधिक तीव्र होती है और किसी भी पुल में उस हवा का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। डोबरा चांठी पुल में हवा के दबाव को कंट्रोल करने के हिसाब से विंड फेरी का इस्तमाल किया गया है।

इनका डिजाइन ऐसा बनाया जाता है कि ये हवा के तेजी से आने वाले झोंकों को आसानी से काट पाए। इस पुल पर कार्य कर रहे इंजीनियरों की माने तो ये पुल लगभग 100 साल तक ऐसे ही रहेगा ,लेकिन यदि इस पुल की देखभाल अच्छे से होती रही तो ये 100 से भी अधिक वर्ष तक चल सकता है।

एक हिसाब से देखें तो लगभग 100 वर्षों तक टिहरी झील में बना ये पुल पूर्णतया सुरक्षित है।डोबरा चांठी पुल हमारे भारत देश सबसे का पहला झूला पुल है। इसकी लंबाई 725 मीटर तथा चौड़ाई 7 मीटर है। इस पुल की समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 850 मीटर है।

ये झूला पुल भारी वाहनों के लिए भी उत्तम है। ये देश का पहला ऐसा झूला पुल है जो भारी वाहनों का वजन सहने में भी सक्षम है। इस पुल पर छोटे वाहनों के लिए कोई भी सीमा नहीं है मतलब एक बार में कितने भी छोटे वहां एक साथ इधर से उधर आ जा सकते हैं।

लेकिन यदि एक तरफ से कोई भारी वाहन इस पुल को पार कर रहा है तो दूसरी ओर से बड़े वहां पर प्रतिबन्ध होगा, छोटे वहां निकल सकते हैं। अर्थात बड़े वहां दोनो और से एक साथ प्रवेश नहीं कर सकते। इसकी निगरानी के लिए पुल के दोनो ओर चौकियां बनी हुई हैं, संचार के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं।

इसके निर्माण से वस्तुओं के आयात निर्यात के कार्य में भी अब आसानी होगी। इस पुल के निर्माण से केवल उत्तराखंड ही नही बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में उभरेगा।

>>>> जानिए उत्तराखंड में स्थित चौखंबा पर्वत क्यों है पर्यटकों के लिए आकषर्ण का केंद्र

Leave a Comment

Recent Posts

Follow Uttarakhand99