Uttarakhand Ki Rajdhani
भारत के सत्ताइसवें राज्य के रूप में निर्मित Uttarakhand Ki Rajdhani तय होने का किस्सा पूर्णतः रोमांच और संघर्ष से भरा है। निम्नलिखित उल्लेख में हम इसी विषय में चर्चा करेंगे। इतिहास की कहानियों में हम सुनते आए हैं कि हर राज्य की दो राजधानियाँ हुआ करती थीं, परंतु वर्तमान में भी कुछ राज्य यही परंपरा निभा रहे हैं। इसी का एक उदाहरण देव भूमि उत्तराखंड भी है। देहरादून और गैरसैंण उत्तराखंड की दो राजधानियाँ हैं।
उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी – Temporary Capital of Uttarakhand
भारत के सत्ताइसवें राज्य, और देव भूमि Uttarakhand Ki Rajdhani देहरादून वैसे तो अपनी सुंदरता, शांति, तथा हर्षोल्लास के विभिन्न विस्तृत गाथाओं के कारण किसी परिचय का मोहताज नहीं है, किंतु फिर भी यदि देहरादून के विषय में कुछ विवरण किया जाए तो आज पूरे उत्तराखंड राज्य में सबसे अधिक विकास देहरादून में ही प्रत्यक्ष होता है।
जनसंख्या की दृष्टि से उत्तराखंड राज्य का सबसे बड़ा शहर, करीब 10,50,000 की विशालकाय जनसंख्या का गृहनगर, इक्कीस वर्षों से उत्तराखंड राज्य की अस्थायी राजधानी जौलीग्रांट अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के स्वामी, 1913 में स्थापित सबसे बड़ी सैन्य छावनी परिसर आई.एम.एस. युनिसन विश्वविद्यालय, दून विश्वविद्यालय, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, वन अनुसंधान संस्थान, समेत और भी बहुत से अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थानों की वजह से उत्तर भारत में शिक्षा का केंद्र बिंदु है देहरादून। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसे गुरु द्रोणाचार्य का निवास स्थान माना जाता है।
सिख गुरु हर राय के पुत्र राम राय ने इसी जगह अपने शिष्यों सहित डेरा बसाया था, और इसी के आस-पास दून घाटी में बस्तियाँ बसनी शुरू हुई, जिस कारण इस स्थान को देहरादून के रूप में ख्याति प्राप्त हुई। सन् 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन होने पर, देहरादून को यहाँ की अस्थायी राजधानी के रूप में स्वीकृत किया गया। उत्तराखंड की राजधानी बनने के पश्चात पहाडियों क्षेत्र से बड़ी मात्रा में पलायन हुआ और देहरादून शहर की जनसंख्या में ज़बरदस्त वृद्धि होती चली गई।
गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए संघर्ष – Struggle to Make Gairsain the Capital
जब से उत्तराखंड के उत्तर प्रदेश से विभाजन और नए राज्य के निर्माण की माँगें उठने लगीं तभी से स्थानीय जनता ने गैरसैंण को नवीन उत्तराखंड राज्य की राजधानी बनाने का सपना देखा और इस विषय को सरकार के समक्ष रखा गया। पहाड़ी जनता की इस माँग के पीछे उनका दृष्टिकोण यह था कि गैरसैंण को अगर उत्तराखंड की राजधानी बनाया जाता है तो यह पूरे राज्य के लिए विकास की कुंजी के रूप में उभरने के लिए सक्षम होगा। राज्य के बिल्कुल मध्य में स्थित होने की वजह से, गढ़वाल और कुमाऊँ, दोनों प्रमंडलों के हर क्षेत्र की पहुँच में होना इस शहर को राजधानी बनाने की माँग का मुख्य कारण था।
जनता की चिंता का कारण यह था कि देहरादून राज्य के एकदम बाहरी ओर स्थित है, और इसे उत्तराखंड की राजधानी बनाने के पश्चात राज्य के सभी अंदरूनी क्षेत्र विकास के कार्यों से लंबे समय के लिए वंचित रह जाएँगे, और ऐसा ही हुआ। सन् 2000 में उत्तराखंड के निर्माण के बाद देहरादून को उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी घोषित कर दिया गया, उसके बाद से प्रशासन संबंधित सभी औपचारिकताएँ देहरादून से ही संभाली जाती रहीं, जिसका परिणाम यह हुआ कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों की परेशानियों के बारे में प्रशासन को कोई खबर नहीं हुई। इसके विरोध में उत्तराखंड के लोगों ने बहुत से अहिंसक प्रदर्शन, आंदोलन, तथा अनशन किए।
यहाँ तक कि लोगों की माँगें पूरी करवाने हेतु श्री मोहन उत्तराखंडी नामक एक प्रमुख प्रदर्शनकारी ने अनशन के दौरान अपने प्राण खो दिए। ऐसे ही लोगों के कहे संघर्ष के कारण सरकारों के कान खड़े होने लगे, और गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने के विषय में विचार किया जाने लगा। अंततः 4 मार्च 2020 को माननीय मुख्यमंत्री द्वारा गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी के रूप में अपनाया गया।
उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी – Uttarakhand Ki Rajdhani for Summers
कुछ समय पूर्व ही उत्तराखंड का बजट पेश करने के दौरान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी और साथ ही उत्तराखंड की स्थायी राजधानी भी घोषित किया है। ऐसा होने से ही उत्तराखंड; महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और आन्ध्र प्रदेश के बाद, दो राजधानियों वाला भारत का पाँचवा राज्य बन गया है। गैरसैंण उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित है, और भौगोलिक रूप से राज्य के बिल्कुल मध्य में पड़ता है। गैरसैंण गहराई में स्थित एक सीधा मैदानी इलाका है, हालाँकि यह कुल मिलाकर पहाड़ी क्षेत्र ही माना जाता है।
शुरुआत से ही स्थानीय लोगों की ओर से गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी की उपाधि प्रदान करने की माँगें की जा रहीं थीं। कई लोगों ने इस माँग के चलते आंदोलन और अनशन भी किए, और इसी संघर्ष का फल गैरसैंण के लोगों को 4 मार्च 2020 में मिला। गैरसैंण के उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनने के पश्चात देहरादून इस राज्य की केवल शीतकालीन और अस्थायी राजधानी रह गई। उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के विभाजन के बाद देहरादून को उत्तराखंड की राजधानी इसलिए चुना गया क्योंकि ये उत्तराखंड का सबसे बड़ा मैदानी शहर है और राज्य में सबसे अधिक विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और संस्थानों का गढ़ है।
परंतु उत्तराखंड राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में स्थित होने के कारण, राजधानी और न्यायालय के बीच की लंबी दूरी एक अड़चन स्वरूप थी। गैरसैंण के उत्तराखंड की राजधानी घोषित होने पर जनता में तनाव कम होने का अनुमान है। साथ ही उत्तराखंड की राजधानी होने के कारण गैरसैंण के विकास की गति में तेज़ी आना भी ज़ाहिर सी बात है। इसके सिवा गैरसैंण का क्षेत्रफल काफ़ी अधिक होने, और इस क्षेत्र के एक महत्त्वपूर्ण पर्यटक स्थल होने के कारण भी इसे उत्तराखंड की राजधानी के रूप में चुना गया है।
गैरसैंण को प्रमंडल बनाने का निर्णय – Decision to Make Gairsain a Division
हाल ही में गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन और स्थायी राजधानी घोषित करने के बाद सरकार ने इसे शीर्ष प्राथमिकता में ले लिया है। और इसी मार्ग में एक कदम बढ़ाते हुए उत्तराखंड की वर्तमान सरकार ने गैरसैंण को एक प्रमंडल बनाने का ऐलान किया। उत्तराखंड में पहले गढ़वाल और कुमाऊँ नमक दो प्रमंडल हुआ करते थे, और अब गैरसैंण के शामिल होने से राज्य तीन प्रमंडलों में बाँट दिया गया है। प्रमंडल बनाए जाने के कारण भविष्य में इस क्षेत्र के लिए रेल तथा हवाई अड्डे जैसी सुविधाओं में वृद्धि होना लाज़मी है। साथ ही गैरसैंण को सरकार द्वारा विकसित इन्फ्रास्ट्रक्चर से लैस कराए जाने का भी अनुमान है।
जनता की माँगें पूरी होने के बाद, इस निर्णय से संपूर्ण राज्य के विकास को बढ़ावा मिलेगा और नज़दीकी प्रशासन केंद्र होने के कारण उत्तराखंड के उन लोगों का जीवन स्तर काफ़ी बेहतर हो सकता है जो राज्य के बहुत छोटे इलाकों में जीवन यापन करते हैं। वर्तमान में मोल रहा यह फल जनता के सालों के संघर्ष का ही परिणाम है।
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