Uttarakhand is mentioned in many places in Ramayana and Mahabharata
उत्तराखंड का उल्लेख सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद में इसे देवभूमि या मनीषियों की भूमि कहा गया है। ऐतरेय ब्राह्मण में इसे उत्तरकुरु का निवास होने के कारण उत्तर-कुरू कहा गया है। महाभारत में भी गंगाद्वार अर्थात् हरिद्वार से लेकर के भृंगतुंग यानि केदारनाथ तक के क्षेत्राें का वर्णन है।
महाभारत के वनपर्व में इसका स्पष्ट उल्लेख भी मिलता है, कि पांडव लोमश ऋषि के साथ इस क्षेत्र में आए थे। रामायण में भी इसका वर्णन है कि श्रीरघुनाथ मंदिर देवप्रयाग में राम जी ने तपस्या की थी। कमलेश्वर मंदिर, श्रीनगर (पौड़ी), एवं विसोन पर्वत (टिहरी) में वशिष्ठ कुंड, वशिष्ठ गुफा, एवं वशिष्ठ आश्रम का उल्लेख मिलता है।
रामायणकालीन बाणासुर की राजधानी ज्योतिषपुर अर्थात् जोशीमठ भी इसी क्षेत्र में स्थित है। जातक ग्रंथों या बौद्ध ग्रंथों (पाली भाषा) में इस क्षेत्र के लिए हिमवंत शब्द का प्रयोग किया गया है।
उत्तराखंड की चर्चा कई पौराणिक शास्त्रों में आती है। इनमें से ऋग्वेद, महाभारत और रामायण आदि हैं।
उत्तराखंड का रामायण में उल्लेख
▪️टिहरी गढ़वाल की एक पट्टी (हिमयाण) में विसोन नामक पर्वत पर वशिष्ठ गुफा, वशिष्ठ कुंड, एवं वशिष्ठ आश्रम स्थित हैं। ऐसा वर्णन आता है कि भगवान राम के वनवास चले जाने पर वशिष्ठ मुनि ने अपनी धर्म-पत्नी अरुंधति के साथ यहीं निवास किया था।
▪️टिहरी गढ़वाल जिले में हो लक्ष्मण जी ने जिस स्थान पर तपस्या की थी उसे आज तपोवन कहा जाता है। कई ऋषि-मुनि आज भी यहां तपस्या के लिए जाते हैं। ये स्थान ध्यान लगाने के लिए उत्तम है।
▪️गढ़वाल क्षेत्र के देवप्रयाग की सितानस्यूं पट्टी में श्री सीता जी पृथ्वी में समाई थी। इसी वजह से यहां मनसार में प्रतिवर्ष बहुत बड़ा मेला लगता है।
▪️देवप्रयाग में भगवान श्री राम जी का एक मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने स्वधाम गमन से पहले इसी स्थान पर तपस्या की थी।
▪️जब मेघनाथ द्वारा शक्ति चलाए जाने पर लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे तब वैद्य सुषेण ने हनुमान जी को उत्तराखंड में हिमालय पर स्थित फूलों की घाटी में भेजा था, संजीवनी बूटी लाने के लिए। ऐसा कहा जाता है कि वो संजीवनी बूटी फूलों की घाटियों में ही स्थित एक वनस्पति थी। जिससे लक्ष्मण जी की मूर्छा टूट गई थी।
बाद में हनुमान जी ने उस पर्वत श्रृंखला को नीचे ही रख दिया था। तब से वो हिमालय की तलहटी में फूलों की घाटी के रूप में पूरे विश्व को अपनी खूबसूरत और मनमोहक दृश्य और विलक्षण खूबसूरती से सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है।
▪️उत्तराखंड में ही विश्व के सबसे ऊंचे शिव मंदिर तुंगनाथ के पास ही चंद्रशिला की पहाड़ियां हैं। ऐसी कहा जाता है कि रावण के वध के पश्चात श्री राम जी ने ब्रह्म हत्या के पाप का पश्चाताप करने के लिए इसी चंद्रशिला पर्वत श्रृंखला पर बैठ के भगवान शिव का ध्यान किया था।
उत्तराखंड का महाभारत में उल्लेख
▪️देवभूमि उत्तराखंड का महाभारत काल से बहुत गहरा नाता रहा है। उत्तराखंड में ऐसी बहुत से स्थान हैं, जो महाभारत काल के गवाह हैं।
▪️महाभारत के वनपर्व में हरिद्वार से केदारनाथ तक की यात्रा में पड़ने वाले स्थानों का वर्णन मिलता है। इस पर्व में बद्रीनाथ धाम की चर्चा भी की गई है। इसी पर्व में लोमश ऋषि के साथ पांडवों के इस क्षेत्र में आने का लिखित वर्णन मिलता है। इसी मान्यता है कि कुंती व द्रौपदी सहित पांडव इसी स्थान से स्वर्ग लोग को गए थे।
▪️महाभारत के वनपर्व के अनुसार उस समय पर इस क्षेत्र में पुलिंद एवं किरात जातियों का आधिपत्य था। राजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर थी। इसने पांडवों की ओर से युद्ध में हिस्सा लिया था।
▪️सुबाहु के बाद राजा विराट का उल्लेख किया गया है, जिसकी राजधानी जौनसार के पास विराटगढ़ी में थी। राजा विराट की ही पुत्री उत्तरा से सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु का विवाह हुआ था।
▪️उत्तराखंड के माणा गांव में महाभारत काल का सबसे बड़ा गवाह है। यहां महाभारत ग्रंथ के रचयिता कृष्ण द्वैपायन श्री वेदव्यास जी का निवास स्थान है। इस स्थान को व्यास पोथी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार व्यास जी ने गणेश जी को अपनी बातों में उलझा दिया और गणेश जी को पूरी महाभारत कथा माणा गांव में स्थित व्यास गुफा में बैठकर लिखनी पड़ी थी।
जिस स्थान पर ये कथा लिखी गई थी वो गुफा अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम तट पर मौजूद है। ये पवित्र स्थान देवभूमि उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माणा गांव भारतीय सीमा का अंतिम गांव है।
▪️उत्तराखंड में जोशीमठ से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर हनुमान चट्टी है। इस स्थान पर महाबली भीम और हनुमान जी की भेंट हुई थी। यहीं हनुमान जी ने भीम को महाभारत युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया था।
▪️ऐसी मान्यता है कि उत्तराखंड में मौजूद पांडुकेश्वर तीर्थ में महाराज पांडु अपनी इच्छा से राज्य का त्याग करने के पश्चात अपनी रानियों कुंती और मादरी के संग इसी स्थान पर निवास करते थे। ये ही पांचों पांडवों की जन्म स्थली है।
▪️प्राकृतिक सुंदरता के मध्य सुंदर वादियों में प्रकृति की गोद में बसा लाखामंडल गांव, यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। ये स्थान गुफाओं और भगवान शिव के मंदिर के प्राचीन अवशेषों से भरा हुआ है। इस गांव के लोगों के अनुसार दुर्योधन ने लाख से लाक्षागृह का निर्माण पांडवों को जिंदा जलाने के एक उद्देश्य से इस षड्यंत्र को अंजाम देने के इरादे से किया था।
लोगों का मानना है कि लाक्षागृह, लाखामंडल के आसपास ही कहीं बनाया गया था। जिस सुरंग से बचकर पांडवों ने अपनी जान बचाई थी, वो सुरंग एक गुफा के मुहाने पर जाकर खुलती है, जो आज भी लाखामंडल में मौजूद है।
▪️ऐसा कहते हैं कि जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे तब माणा गांव से आगे उन्होंने सरस्वती नदी से आगे जाने के लिए रास्ता मांगा था लेकिन सरस्वती नदी ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और मार्ग नहीं दिया। ऐसे में महाबली भीम ने दो बड़ी-बड़ी शिलायें उठाकर इसके ऊपर रख दी, जिससे कि भीम पुल का निर्माण हुआ। आज तक यहां पर ये भीम पुल मौजूद है।
प्राचीन काल में इस क्षेत्र में बद्रिकाश्रम और कणव नामक प्रसिद्ध विद्यापीठ था। इसमें से कणव आश्रम दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम प्रसंग के कारण विशेषतः प्रसिद्ध है। ये आश्रम चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्म स्थली है। जिनके नाम पर अपने देश का नाम भारत पड़ा।
उत्तराखंड का इतिहास बहुत पुराना है। उत्तराखंड का उल्लेख न जाने कितने ही ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। ऋग्वेद में उत्तराखंड की सबसे अधिक चर्चा की गई है, साथ ही साथ ब्राह्मण ग्रंथ, महाभारत, रामायण आदि में भी इसका उल्लेख मिलता है।
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