भारत देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए मां भारती के अनेक पुत्रों से अपनी जान की परवाह किए बिना कई सारे स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया था।
एक ऐसा ही वीर पुत्र भारत की देवभूमि यानि उत्तराखंड में जन्मा था, जिन्होंने भारतीयों को अंग्रेजों की बेड़ियों से छुड़ाने के लिए अपना सर्वस्व जीवन बलिदान कर दिया था।
हमारे आज के इस लेख में हम आपको देवभूमि के उन्हीं महान् स्वतंत्रता सेनानी श्री देव सुमन जी के जीवन के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ करीब 84 दिनों तक भूख हड़ताल की और शहादत प्राप्त की।
श्री देव सुमन जी का आरंभिक जीवन परिचय
श्री देव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जनपद में स्थित एक गांव जौल पट्टी बमुंड में हुआ था। इनके बचपन का श्री दत्त बडोनी था।
इनके पिता श्री हरिराम बडोनी थे, जोकि एक कुशल वैद्य थे।
इनकी माता का नाम श्रीमती तारा देवी था, जोकि एक गृहणी थी। श्री देव सुमन जब मात्र 3 वर्ष के थे, तभी हैजा जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में आने के चलते इनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी।
जिसके बाद इनकी माता ने ही इनका पालन पोषण किया।
इनकी पत्नी का नाम विजयलक्ष्मी सकलानी था। श्री देव सुमन की आरंभिक शिक्षा अपने पैतृक गांव चंबाखाल से पूर्ण हुई थी, जबकि इससे आगे की शिक्षा के लिए वह देहरादून चले गए थे।
जहां श्री देव सुमन अध्ययन के साथ-साथ अध्यापन भी किया करते थे। ऐसे में वह हिंदू नेशनल कॉलेज, देहरादून में बतौर शिक्षक पढ़ाया भी करते थे। श्री देव सुमन बचपन से ही प्रतिभाशाली थे।
इन्होंने कई सारी महत्वपूर्ण परीक्षाएं उत्तीर्ण की और सम्मान प्राप्त किए हैं। जिनमें हिंदी साहित्य सम्मेलन की विशारद, पंजाब विश्वविद्यालय का रत्न भूषण और साहित्य रत्न आदि शामिल है।
इसके बाद वह आगे उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चले गए।
श्री देव सुमन जी का देश प्रेम और राजनीतिक सफर
स्कूल के दिनों से ही श्री देव सुमन गांधीवादी विचारधारा के काफी करीब आ गए थे और उन्होंने केवल 14 साल की उम्र से ही, जिस उम्र में बच्चे खेलकूद किया करते हैं, उसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना आरंभ कर दिया था।
हालांकि आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें जेल तक जाना पड़ा, लेकिन कम आयु होने के कारण वह जल्द ही जेल से बाहर भी आ गए।
वर्ष 1930 में जब गांधी जी द्वारा नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया गया था, तब श्री देव सुमन ने अपने देश प्रेम का परिचय दिया था।
इसी दौरान उन्होंने वर्ष 1938 में गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित एक राजनैतिक सम्मेलन में पंडित जवाहरलाल नेहरू और विजय लक्ष्मी पंडित के समक्ष ओजस्वी भाषण प्रस्तुत किया था।
जिसके माध्यम से उन्होंने टिहरी और गढ़वाली धरती की समस्याओं को सबके सामने उजागर किया था। अपने भाषण में इन्होंने जिला गढ़वाल और राज्य गढ़वाल की एकता का नारा दिया था।
साथ ही कहा था कि यदि “मां गंगा हमारी माता होकर भी हमारे दो क्षेत्रों टिहरी और गढ़वाल को दो हिस्सों में बांटती है, तो हम गंगा को काट देंगे” इनके उपरोक्त विचारों की बदौलत पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इनसे काफी प्रभावित हुए थे।
ऐसे में श्री देव सुमन ने बहुत ही कम आयु में राजनीति के क्षेत्र में भी पांव पसारना आरंभ कर दिया था। इन्होंने देवभूमि की जनता को ना केवल अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने को कहा, बल्कि टिहरी में प्रजातंत्र का भी समर्थन किया।
इसके लिए वह पग-पग अनेक जगहों की यात्रा भी किए करते थे और जन जागरण भी।
श्री देव सुमन ने टिहरी जनता और रियासत के बीच सम्मानजनक संधि प्रस्ताव भेजकर भी जनता को उनके वंचित अधिकार दिलाने का प्रयास किया था, लेकिन वह इसमें नाकाम रहे।
परंतु श्री देव सुमन जी के कुशल नेतृत्व, ओजस्वी विचारों और आंदोलनों में सक्रिय भूमिका के चलते वर्ष 1939 में इन्हें टिहरी राज्य प्रजा मंडल का संयोजक मंत्री चुन लिया गया।
इस मंडल का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी सरकार की नीतियों के विरुद्ध आवाज बुलंद करना था।
श्री देव सुमन की रचनाएं
1932: सुमन सोरव कविता संग्रह
1937: सुमन सौरभ संग्रह
धर्मराज, कर्मभूमि, हिंदू, राष्ट्रमत, हिमाचल आदि पत्रिकाओं का संपादन।
श्री देव सुमन के विचार
तुम मुझे तोड़ सकते हो, मोड़ नहीं सकते।
यदि मरना ही है तो अपने सिद्धांतों और विश्वास की सौरव सार्वजनिक घोषणा करते हुए ही मरना श्रेयष्कर है।
प्रजा के खिलाफ काले कानून और नीतियों का मैं सदा विरोध करता हूं और ये मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।
मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट कर दूंगा, लेकिन टिहरी के नागरिकों के अधिकारों को कुचलने नहीं दूंगा।
श्री देव सुमन का परिचय संक्षिप्त में
पूरा नाम:- श्री देव सुमन
बचपन का नाम:- श्री दत्त बडोनी
आयु:- 29 वर्ष
जन्मदिवस:- 25 मई 1916
मृत्यु:- 25 जुलाई 1944
जन्म स्थान:- टिहरी गढ़वाल जनपद, गांव जौल पट्टी बमुंड
माता का नाम:- श्रीमती तारा देवी
पिता का नाम:- श्री हरिराम बडोनी
स्थापना:- गर्दिश सेवा संघ, हिमालय सेवा संघ, हिमालय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, हिमालय देसी राज्य प्रजा परिषद
लोकप्रियता:- महान स्वतंत्रता सेनानी
उपाधि:- गढ़वाली भगत सिंह
सम्मान:- श्री देव सुमन सागर नामक विशाल बांध
श्री देव सुमन की भूख हड़ताल और जीवन का अंतिम सफर
साल 1942 में जब अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन संपूर्ण देश में चलाया जा रहा था। तब देवभूमि में इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए श्री देव सुमन जी ने काफी योगदान दिया।
हालांकि इस आंदोलन में भाग लेने के चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
इतना ही नहीं, अपने जीवनकाल में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में श्री देव सुमन को कई बार कालकोठरी की सजा और बेतों की मार तक सहन करनी पड़ी।
यहां तक कि रियासती लोगों ने उन्हें खाने के लिए कांच की रोटियां तक दी, लेकिन इस वजह से उनके आजादी के हौसलों में कभी कमी नहीं आई।
इस आंदोलन के उपरांत जब श्री देव सुमन टिहरी वापिस लौटे। तब उन्हें टिहरी में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली, क्योंकि श्री देव सुमन स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।
उस दौर में टिहरी में राजतंत्र मौजूद था, ऐसे में वहां राजाओं का राज हुआ करता था।
जहां नागरिकों के अधिकारों के हनन के विरोध में भी श्री देव सुमन ने आवाज उठाई थी। जिसके लिए उन्हें टिहरी की जेल में भी डाल दिया गया था।
इतना ही नहीं, उन पर 200 रुपए का जुर्माना भी लगा दिया गया था।
इस दौरान उन पर राज शासकों ने बहुत अत्याचार किए। यहां तक कि उनके ऊपर झूठे मुकदमे भी लगा दिए गए।
ऐसे में जब श्री देव सुमन जेल से बाहर आए तब उन्होंने खुद ही अपनी पैरवी की।
और अपने ऊपर लगे गलत आरोपों के खिलाफ उन्होंने 3 मई 1944 में अनशन किया। इस दौरान उन्होंने तीन शर्तें रखी।
जिनमें पहली शर्त थी कि टिहरी राज्य में प्रजातंत्र लागू हो। दूसरा, राज्य में पत्र व्यवहार को मंजूरी मिले और तीसरा उनपर लगाए गए सारे आरोप राजा सुने और फिर फैसला लें।
इतना ही नहीं श्री देव सुमन ने ये भी कहा कि अगर उनकी इन शर्तों को 15 दिनों के भीतर नहीं माना गया तो वे आमरण अनशन शुरू कर देंगे।
ऐसे में जब उनकी बात किसी ने नहीं सुनी, तो उन्होंने करीब 84 दिनों तक भूख हड़ताल आरंभ कर दी।
कई बार अंग्रेजी और राजतंत्र से जुड़े शासकों ने उनका आमरण अनशन तोड़ने का भी प्रयास किया, जिसमें वह असफल रहे।
ऐसे में लगातार तीन महीने तक अनशन के उपरांत 25 जुलाई 1944 को श्री देव सुमन ने अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया।
कहा जाता है कि राजव्यवस्था से जुड़े कुछ लोगों ने श्री देव सुमन के द्वारा अनशन तोड़ने की अफवाह फैला दी थी, साथ ही उन्हें गलत इंजेक्शन दे दिया था।
इतना ही नहीं, श्री देव सुमन जी के शव को रियासत के लोगों ने भागीरथी नदी में फेंक दिया था।
जिसके बाद श्री देव सुमन जी के अनुयायियों और टिहरी की जनता ने राजतंत्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और देव सुमन जी के टिहरी मुक्त राज्य का सपना आखिरकार 1 अगस्त 1949 को साकार हो गया।
तभी से टिहरी गढ़वाल राज्य भारतीय गणराज्य में मिल गया।
इस प्रकार, टिहरी गढ़वाल में आज भी श्री देव सुमन के राजतंत्र और अंग्रेज सरकार के खिलाफ किए गए कार्यों को याद किया जाता है।
उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हर वर्ष 25 जुलाई को सुमन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
श्री देव सुमन जी का जीवन चरित्र ना केवल उत्तराखंड वासियों के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतवासियों के लिए प्रेरणास्रोत है।
आशा करते है आपको यह ज्ञानवर्धक जानकारी अवश्य पसंद आई होगी। ऐसी ही अन्य धार्मिक और सनातन संस्कृति से जुड़ी पौराणिक कथाएं पढ़ने के लिए हमें फॉलो करना ना भूलें।
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