प्रागैतिहासिक युग यानी वो समय जब मानव गुफाओं में निवास करता था और भोजन के लिए शिकार करता था। ये वो वक्त है जब ज्यादातर मानव जाति कंदमूल फलों पर ही निर्भर थी।
कुल मिलाकर ये वो काल है जब मानव जाति विकास से परे थी। वही उत्तराखंड राज्य में भी कई ऐसी वस्तुएं, गुफा चित्र, मृदभांड और शवाधान है जो यहां के बरसों पुराने प्रागैतिहासिक युग का बखान करते हैं। ये युग उत्तराखंड में बसे प्राचीन इतिहास का जिक्र करता है।
आपको बता दें कि उत्तराखंड के प्रागैतिहासिक काल की प्रथम खोज का श्रेय मशहूर खोजकर्ता डॉ यशवंत सिंह के अनुसार महेश्वर प्रसाद जोशी को जाता है।
दरअसल इन्होंने 1968 में अल्मोड़ा के सुयाल नदी के तट पर स्थित ‘लखु गुफा’ की खोज की थी। इसके बाद से ही ऐसे कई विभिन्न स्थान है जहां पर प्रागैतिहासिक काल की खोज जारी है।
वही केवल अल्मोड़ा में ही प्रागैतिहासिक काल को लेकर करीब एक दर्जन साक्ष्य मिले हैं। साथ ही गढ़वाल में भी अलकनंदा घाटी के चमोली में भी गोरख्या उडयार तथा पिण्डर घाटी के किमनी नामक गांव में शिलाश्रय शैल चित्र पाए गए हैं।
उत्तराखण्ड के प्रागैतिहासिक काल की प्रमुख खोजें
लखु गुफा
इसकी खोज सन 1968 में डॉ यशवंत सिंह कटोच के मुताबिक महेश्वर प्रसाद जोशी ने की थी। आपको बता दें कि ये लखु गुफा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के एक जिले जिसका नाम अल्मोड़ा है उसमें सुयाल नदी के पूर्वी तट पर बाढ़छीना के समीप पाई जाती है।
ये अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ के रास्ते पर 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दरअसल ये शिलाश्रय नागफनी के आकार का है जो कि सड़क मार्ग से साफ-साफ देखा जा सकता है।
इसकी दीवारों में और फर्श के ऊपर आकृतियां बनी हुई है जिसमें काला, गेरू, सफेद और गुलाबी रंगों का इस्तेमाल किया हुआ है।
इस चित्र में मुख्य रूप से सामूहिक नृत्य को दिखाया गया है, जिसमें करीब 34 आदमी नृत्य करते देखे जा सकते हैं। इसके अलावा एक चित्र में 6 मनुष्यों को एक जानवर का पीछा करते हुए भी दिखाया गया है।
फड़का नौली
दरअसल अल्मोड़ा जिले की लखु गुफा से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर फरका नौली चुंगी घर के आसपास तीन और ऐसे शिलाश्रय मौजूद है।
आपको बता दें इसकी खोज डॉक्टर यशोधर मठपाल ने की थी। साथ ही इस शिलाश्रय में कभी संयोजनात्मक चित्रकारी भी हुआ करती थी जो अब धुंधली हो चुकी है। वही इसमें से एक शिला श्रेय आपको नागराज के फन की तरह नजर आएगी।
पेटशाला
इसके बाद अल्मोड़ा में ही लखु गुफा से कुछ 2 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम की दिशा में पाठशाला गांव के ऊपर दो शिलाश्रय स्थित है।
आपको बता दें कि ये शिलाश्रय पाठशाला और पुणे कोर्ट गांव के मध्य स्थित कफ्फरकोट नामक एक स्थान पर दो चट्टानों के बीच में मौजूद है। साथ ही इसकी खोज भी डॉक्टर यशोधर मठपाल द्वारा की गई।
वही पेट साल किए गुफा कुछ 8 मीटर गहरी और 6 मीटर ऊंची पाई गई है। वहीं दूसरी गुफा 50 मीटर पूर्व में 3.10 मीटर गहरी और 4 मीटर ऊंची पाई गई। इस चित्र में पाठशाला में नृत्य करती मानव आकृतियां कत्थई रंग से उभारी गई हैं।
फलसीमा
ये शिलाश्रय अल्मोड़ा जिले से करीब 8 किलोमीटर उत्तर पूर्व और फलसीमा गांव से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दरअसल इसमें चट्टान के ऊपर दो कप मार्क गिरे हुए हैं और योग व नृत्य मुद्रा में मनुष्य की आकृतियां मिली है।
वही अल्मोड़ा से कुछ 8 किलोमीटर की दूरी में उत्तर में कसार देवी पहाड़ी पर भी कुछ शिलाश्रय प्राप्त किए गए हैं।
ल्वेथाप
आपको बता दें कि ये शिलाश्रय अल्मोड़ा बिनसर के मार्ग पर दीना पानी से लगभग 3 किलोमीटर पर स्थित है। इस पर लाल रंग से चित्रकारी उकेरी गई है।
वही इन चित्रों में मनुष्य को शिकार करते और हाथों में हाथ डालकर नृत्य करते हुए दिखाया गया है। इसमें तीन शिलाश्रय मौजूद हैं वही ल्वेथाप, दूर पूर्वी क्षितिज पर लखु गुफा का काफी सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
गोरख्या गुफा
अब बात करते हैं गोरखा गुफा की। दरअसल ये चमोली जिले के डूंगरी गांव में स्थित है इसे राकेश भट्ट द्वारा लोगों के सामने लाया गया। इस गुफा में स्थित जो चित्र हैं जो पीले रंग की धारीदार चट्टान पर गुलाबी और काले रंगों से उकेरे गए हैं।
वही आपको बता दें कि इस गुफा में करीब 41 आकृतियां हैं जिनमें से 30 मानव, 8 पशु और तीन पुरुषों के चित्र हैं। वहीं अगर इन चित्रों को चित्रकला की दृष्टि से देखा समझा जाए तो ये अत्यंत ही खूबसूरत है।
यहां डॉक्टर यशोधर मठपाल का ऐसा मानना है किए गुफा में गोरखा द्वारा लूटपाट के माल को सांस्कृतिक रूप से अन्य साथियों उजागर करने के लिए यहां शैल चित्र का निर्माण किया गया था।
▪️किमनी गाँव: आपको बता दें कि चमोली जिले में कर्णप्रयाग- ग्वालदम मोटर मार्ग पर एक किमनी नाम का गांव स्थित है। यहां मिले शिलाश्रय में श्वेत रंग से बने हुए शैल चित्र प्राप्त किए गए हैं।
इस शैल चित्र में सफेद रंग के हथियार व पशुओं की चित्रकारी निर्मित है, जो अब धूमिल हो चुकी है। इसके अलावा भी उत्तरकाशी के पुरैला में लगभग 5 किलोमीटर दक्षिण की ओर यमुना घाटी में 20 मीटर गहराई पर सड़क के बाईं ओर कुछ शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
इनमें से एक काले रंग का आलेख भी है जो लगभग धूमिल हो चुका है। वही डॉक्टर यशोधर मठपाल इसको 2100 से 1400 साल पुराना बताते हैं जिसे शंख लिपि में लिखा गया है।
इस लेख के माध्यम से हमने आपको बताया उत्तराखंड के प्रागैतिहासिक काल के विषय में। वो समय जब मनुष्य पत्थरों से आग जलाता और फल या जानवरों से अपना पेट पालता था। जाहिर है इतिहास के वो पन्ने मानवजाति को ये अनुभूति कराते रहते हैं कि कैसे उसने विकास के मार्ग पर चलकर इतना कुछ हासिल किया है।