देवभूमि उत्तराखंड भारत भूमि का एक ऐसा अद्भुत टुकड़ा है, जो अपने अंदर रहस्यों और सुंदरता का खजाना समेटे हुए है। उत्तराखंड को देवभूमि इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि यहां देवताओं ने अलग अलग रूपों में आकर वास किया है।
यही कारण है कि यहां ईश्वर के असीम भक्तों जमावड़ा लगा रहता है। यूं तो भगवान की पूजा अर्चना में एक सच्चा भक्त अपने तन-मन से पूरी तरह रम जाता है।
आपने अधिकतर ऐसे मंदिर देखें होंगे जहां भक्त अपना सर्वस्व समर्पण कर भगवान की उपासना में लगे रहते हैं।लेकिन क्या आपने कभी ऐसे मंदिर के विषय में सुना है जहां पुजारी आंखों में पट्टी बांधकर पूजा करते हो?
आज हम आपको एक ऐसे ही रहस्यमय मंदिर के विषय में बताने जा रहे हैं, जो उत्तराखंड में स्थापित है और जहां पंडित आंखों में पट्टी बांधकर पूजा करते हैं।
दरअसल, उत्तराखंड मुख्य तौर पर दो भागों में विभाजित है- कुमाऊं और गढ़वाल। कुमाऊं भाग के चमोली में मौजूद बाण गांव में लाटू देवता का भव्य मंदिर है।
कहा जाता है कि इस मंदिर में लाटू देवता स्वयं नागराज मणि के साथ विराजमान हैं। इस मंदिर के कपाट साल में एक बार खुलते हैं और पुजारी के सिवा यहां अन्य कोई पूजा के लिए नहीं जा सकता है। पुजारी इस मंदिर से 80 फीट दूर खड़े होकर आंख व मुंह पर पट्टी बांधकर पूजा करते हैं।
लाटू देवता मंदिर के विषय में महत्वपूर्ण बातें
आधुनिक समय में इस मन्दिर के रहस्य को जानने का इच्छुक हर कोई होगा, लेकिन प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में लाटू देवता नागराज के रूप में अपनी मणि के साथ विराजते हैं, इसलिए इस मंदिर के गर्भ गृह में जाने की अनुमति किसी को नहीं है।

यही कारण है कि पुजारी भी 80 फीट दूर से पूजा करते हैं। लाटू देवता मंदिर के इतिहास के विषय में कई कहानियां तथा लोककथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक के अनुसार लाटू देवता को कन्नौज का राजकुमार बताया है।
वहीं अधिकतर लोगों ने यह माना है कि लाटू देव भगवान भोलेनाथ के प्रमुख गणों में से एक है और माता नंदा (जो कि स्वयं पार्वती का स्वरूप हैं) के भाई हैं।
इसके साथ ही लाटू देवता शिव का सेनापति भी हैं और राक्षसों से युद्ध के समय अगवानी भी करते थे। लाटू देवता के छो सिंह और बमो सिंह नाम के दो सहयोगी भी माने जाते हैं।
लोककथाओं के अनुसार, लाटू देवता (राजकुमार) की जिस जगह मृत्यु हुई थी, वहां रहने वाले बिष्ट जाति के लोगों ने एक पत्थर के लिंग की स्थापना कर दी थी।
जिसके कुछ समय बाद कुछ लोगों ने वहां देखा कि उस पत्थर में लिंग पर एक गाय दूध चढ़ाती है। उस गाय के स्वामी ने वो लिंग खंडित कर दिया।
जिसके बाद वहां के है स्थाई निवासी को स्वप्न में वह लिंग बाण गाँव मे पड़ा हुआ दिखाई दिया और उसे स्वप्न में उस लिंग को स्थापित करके मंदिर बनाने का आदेश प्राप्त हुआ। वह व्यक्ति तत्काल बाण गावँ गया और उस लिंग की स्थापना करके वहां एक मंदिर भी बनवा दिया।
लाटू देवता मंदिर की पौराणिक कथा
लाटू देवता के मंदिर के विषय में यह पुरानी कथा प्रचलित है कि जब भगवान शिव के साथ देवी पार्वती का विवाह हुआ था। तब पार्वती जी को नंदा देवी के नाम से जाना जाता था।
नंदा देवी को ससुराल विदा करने के लिए सभी भाई कैलाश की ओर चल दिए। नंदा देवी के भाइयों में लाटू चचेरे भाई थे, नंदा देवी को विदा करते समय जब लाटू जा रहे थे तब हमें मार्ग में प्यास लगी और पानी ढूंढने के लिए वह इधर से उधर भटकने लगे।

पानी की तलाश करते हुए लाटू देवता को एक घर दिखाओ और वह घर के अंदर पहुंच गए। घर का मालिक बुजुर्ग था, उस बुजुर्ग ने लाटू से कहा कि मटका कोने में है आप जाकर उसमें से पानी ले लो।
बुजुर्ग के उस घर में कांच के घड़े में जान (कच्ची शराब) और मिट्टी के दूसरे घड़े में पानी रखा था। लेकिन जान इतना साफ था कि लाटू उसे पानी समझकर पी लेते हैं।
जब लाटू को यह ज्ञात हुआ कि उसने पानी की जगह मदिरा पी ली है तो कुछ ही समय मदिरा ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया और लाटू मदिरा के नशे में कोहराम मचाने लगे।
लाटू के इस व्यवहार को देखते हुए माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने लाटू को क्रोधवश कैदखाने में डाल दिया। तब से लाटू उस मंदिर स्थल पर कैद हैं।

लाटू देवता ने वहां नाग का रूप धारण कर लिया। जिसके बाद से वहां लोग उन्हें प्रकोप से बचने के लिए पंडित मुंह व आंख पर कपड़ा बांधकर पूजा करते हैं।
लाटू देवता का मंदिर समुद्र तल से 8500 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर 150 मीटर तक फैला हुआ है। इस मंदिर के चारों ओर सुरई के पेड़ के कण हैं और मंदिर के ऊपर 5 मीटर व्यास का विशालकाय बरगद का पेड़ है।
इस मंदिर के कपाट साल में एक बार बैसाख पूर्णिमा के दिन खुलते हैं। इस दिन मंदिर में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता और चंडीपाठ किया जाता है।
चूंकि यह कहा जाता है कि यहां नागदेवता मणि के साथ विराजित हैं, इसलिए मणि के तेज और नाग के विष से सुरक्षित रहने के लिए पुजारी आंख व मुंह पर पट्टी बांधकर जाते हैं।
आपको बता दें, प्रत्येक 12 सालों में उत्तराखंड की सबसे लंबी यात्रा की जाती है। जिसका नाम ‘नंदा देवी की राज जात यात्रा’ है। इस लंबी यात्रा का बार बारहवां पड़ाव बाण गांव है।
इस यात्रा में बाण गांव में स्थापित लाटू देवता के मंदिर से हेमकुंड तक नंदा देवी का अभिनंदन करते हैं। लाटू देवता को बाण गांव के स्थानीय लोग आराध्य देवता मानते हैं।
देवताओं की इस भूमि पर ऐसे ही ना जाने कितने रहस्य छिपे हुए हैं, लेकिन लाटू देवता के मंदिर का रहस्य सभी को आश्चर्यचकित कर देता है।