उत्तराखंड, जी हां उत्तराखंड की ऐतिहासिक विरासत के बारे में जितना भी कहा जाए उतना ही कम है, मानो प्रकृति ने अपनी संपूर्ण छटा यही बिखेर रखी है। उत्तराखंड में घूमने के लिए जगहों की कमी नहीं है एक से बढ़कर एक यहां सुंदर- सुंदर स्थान बने हुए हैं।
यहां की हसीं वादियो में एक अलग ही खूबसूरती देखने मिलती है, जिस भी तरफ देखो चारों ओर हरियाली, पहाड़, नदियां, झरने आदि आपकी आंखों को मनमोहक दृश्य तथा मन को सुकून देते नजर आते हैं। यहां की हवा में एक अलग ही सुगंध है।
न जाने कितने दिव्य एवं पुरातन सांस्कृतिक मंदिरों की धूलि को साथ लेकर उड़ती हुई है यहां की हवा जब माथे को छूती है तो अलग ही आनंद का एहसास होता है। केवल इतना ही नहीं उत्तराखंड की प्रकृति की गोद में न जाने कितने दिव्य एवम् दुर्लभ पेड़- पौधे तथा फूल उपस्थित हैं। यहां पर ऐसे वन्य जीव जंतु भी पाए जाते हैं, जो कहीं और देखने को नहीं मिलते। उत्तराखंड की दिव्यता का ही प्रमाण है “माणा गांव”।
दरअसल भारत के उत्तराखंड में एक माणा नामक गांव है, ये भारतवर्ष का अंतिम गांव है जिससे स्वर्ग जाने का रास्ता भी कहा जाता है। इस काम को लेकर के अनेकानेक रोचक बातें कही जाती हैं। अपनी खूबसूरती एवं सांस्कृतिक महत्व के कारण ये गांव आकर्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र है बना हुआ है।
सबसे अधिक आकर्षण की बात तो ये है कि माणा भारतवर्ष का अंतिम गांव है। इस स्थान पर अलकनंदा और सरस्वती नदियों का संगम भी देखने को मिलता है। माणा गांव उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम से चार किलोमीटर की दूरी पर भारत-चीन सीमा पर स्थित है।
माणा गांव का पौराणिक महत्व

माणा गांव का पौराणिक नाम मणिभद्र है। पुराणों में ऐसा विदित है कि जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे, तब उन्होंने इसी स्थान पर सरस्वती नदी से जाने का रास्ता मांगा था। ऐसा कहते हैं इसी गांव से होते हुए पांडव स्वर्ग को गए थे। यहां पर गणेश गुफा, व्यास गुफा, और भीम पुल भी देखने योग्य हैं।
भीम पुल सरस्वती नदी पर बना हुआ है, जिसके बारे में ऐसा कहते हैं कि जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे तब उन्होंने इसी स्थान पर सरस्वती नदी से स्वर्ग जाने के लिए रास्ता मांगा था। परंतु जब सरस्वती नदी ने पांडवों की इस बात को अनसुना कर दिया तथा उन्हें मार्ग नहीं दिया।
आपको बता दें कि तब भीमसेन ने दो बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाएं उठाकर इसके ऊपर रख दीं। जिस कारण से यहां भीम पुल का निर्माण हुआ और इसी पुल से होते हुए पांडव जन आगे चले गए। वो पुल आज भी यहां पर इस माणा गांव में मौजूद है।
यहां की ये भी एक रोचक बात है कि सरस्वती नदी यहीं विद्यमान है तथा इससे कुछ ही दूरी पर सरस्वती नदी अलकनंदा नदी में समाहित हो जाती है। नदी इस स्थान से नीचे को जाती तो दिखती है परंतु इन नदियों का संगम कहीं नहीं देखने को नहीं मिलता।
इस बारे में ऐसा कहते हैं कि सरस्वती नदी द्वारा मार्ग न दिए जाने पर भीमसेन ने रुष्ट होकर अपनी गदा से भूमि पर एक जोर का प्रहार किया, जिसके कारण ये नदी पाताल लोक को ले गई।वहीं एक अन्य कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब गणेश जी वेदों को लिख रहे थे तब उस समय सरस्वती नदी अपने संपूर्ण वेग के साथ बह रही थीं, तथा बहुत अधिक शोर कर रही थी।
गणेश जी ने विनम्रता के साथ सरस्वती जी से कहा कि, हे देवी! कृपया करके अपना शोर कुछ कम करें, आपके इस शोर के कारण मुझे कार्य करने में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। परंतु सरस्वती नदी पर उनकी इस बात का कोई असर न पड़ा, वे अपने ही वेग से बहती रही।
जिस कारण गणेश जी, सरस्वती नदी से रुष्ट हो गए तथा उन्हें श्राप दे दिया कि आज के बाद तुम इससे आगे किसी को भी नहीं दिखोगी। वर्तमान में भी भीम पुल के पास सरस्वती नदी बहुत अधिक शोर करती हैं।यहीं पर कृष्ण द्वैपायन श्री वेदव्यास जी की गुफा भी है। श्री वेदव्यास जी वे हैं जिन्होंने संपूर्ण वेदों एवम पुराणों की रचना की।
श्रीमद भागवत, महाभारत तथा श्री मदभगवत गीता इत्यादि पुराणों के रचनाकार हैं । श्री वेदव्यास जी की गुफा के बारे में ऐसा बताया जाता है कि महर्षि वेदव्यास जी ने इसी गुफा में बैठकर वेद, पुराण और महाभारत आदि की रचना की थी तथा भगवान श्री गणेश उनके लेखक बने थे। ऐसा माना जाता है कि व्यास जी इसी गुफा में रहते थे।
वर्तमान समय में इस गुफा में श्री वेदव्यास जी का मंदिर बना हुआ है, जिसे व्यास गुफा कहते हैं। व्यास गुफा में व्यास जी के साथ-साथ उनके परम स्नेही पुत्र श्री शुकदेव जी और वल्लभाचार्य जी की भी प्रतिमा है। इनके साथ ही यहां भगवान श्री विष्णु जी की भी एक प्राचीन प्रतिमा विद्यमान है।
यहां कि सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बनी हुई है यहां की एक लौती चाय की दुकान जिसका नाम है, भारत की आखिरी चाय की दुकान। मई से लेकर अक्टूबर महीने तक यहां पर बड़ी भारी संख्या में पर्यटकों की भीड़ होती है। घूमने के लिहाज से यहां पर आने को मई से लेकर अक्टूबर तक का समय सबसे उत्तम समय माना जाता है।
श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट छः महीने बंद रहते हैं तथा छः महीने दर्शन के लिए खोले जाते हैं। इन छः महीनों में ही इस गांव में अच्छी खासी चहल-पहल बनी रहती है, इसके पश्चात बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होते ही अगले छः महीनों के लिए यहां पर पर्यटकों का आना जाना बंद हो जाता है।
यदि आप इस वर्ष कहीं घूमने जाना चाहते हैं तो उत्तराखंड के इस रोचक गांव में आ सकते हैं। यहां पर कई दार्शनिक स्थल है। इस स्थान पर आपको बहुत से प्राचीन मंदिर एवं गुफाएं देखने को मिलेंगी। ये गांव बद्रीनाथ धाम से केवल चार किलोमीटर की दूरी पर है। आखिर एक बार तो बनता है भारत की आखिरी चाय की दुकान में कड़ाके की ठंड तथा जोरदार बर्फबारी के बीच गरमा-गरम चाय की चुस्की लेने का।
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