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जानिए उत्तराखंड में स्थित विष्णुप्रयाग क्यों है पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र

विष्णुप्रयाग जोकि भारतवर्ष में देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित एक बस्ती है। ये स्थान अलकनंदा और धौलीगंगा नदी के संगम पर बसा है। पंच प्रयागों में से एक ये प्रयाग देवप्रयाग के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

इसी स्थान से राष्ट्रीय राजमार्ग 7 गुजरता है। चमोली जिले में कई ऐसे मंदिर और स्थान हैं, जो लाखों लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं। चमोली मध्य हिमालय के बीचो बीच स्थित है। अलकनंदा नदी यहां की एक प्रसिद्ध नदी है।

चमोली चारों तरफ से बर्फ से ढके पर्वतों के बीच में स्थित एक बात ही खूबसूरत स्थान है। ये अलकनंदा नदी के पास बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। विष्णुप्रयाग यहां के प्रमुख स्थानों में से एक है।

विष्णुप्रयाग उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध पंच प्रयोगों और मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है। ये भारत के प्रसिद्ध संगम स्थलों में से एक है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 1372 मीटर है। विष्णुप्रयाग विष्णु गंगा या धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम पर स्थित है।

अलकनंदा नदी का उद्गम स्थल सतोपंथ है एवं धौलीगंगा नदी का उद्गम स्थल नीति पास है। धौली गंगा नदी बहुत वेग से अलकनंदा नदी से मिलती है। जोशीमठ बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है। विष्णु प्रयाग, जोशीमठ से आगे मोटर मार्ग से लगभग 12 किलोमीटर और पैदल मार्ग से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

गंगा नदी के संगम पर स्थित इस पवित्र स्थान पर देवर्षि नारदजी ने अष्टाक्षरी जप से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था। यहां ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान विष्णु अपने नरसिंह अवतार में समाधिस्थ हुए थे।

इसी संगम पर भगवान विष्णु की प्रतिमा से सुसज्जित एक प्राचीन मंदिर और विष्णु कुंड स्थित है। भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर और विष्णु कुंड यहां का प्रमुख दर्शन स्थल है। पंच प्रयागों में देवप्रयाग के बाद विष्णुप्रयाग का ही सबसे विशेष महत्व माना जाता है।

18 पुराणों में से एक स्कंद पुराण में विष्णुप्रयाग का वर्णन बहुत अच्छे से, विस्तार से किया गया है। विष्णुप्रयाग में विष्णु गंगा नदी में पांच और अलकनंदा नदी में भी पांच ही कुंडों का वर्णन किया गया है। इसी स्थान से सूक्ष्म बद्रिकाश्रम की शुरुआत हो जाती है।

प्रत्येक वर्ष दूर दूर से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सन् 1921 में चट्टानों को काट काटकर विष्णु कुंड तक सीढ़ियां बनाकर तैयार की गई थी। इस संगम स्थल पर स्नान का विशेष महत्व बताया गया हैं। 

विष्णुप्रयाग का अति शांत वातावरण और झील के स्वच्छ जल में पर्वतों का स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई देना बहुत ही मनमोहक लगता है। विष्णुप्रयाग, जिसके नाम से ही ये बात स्पष्ट होती है कि इसका नाम भगवान विष्णु के नाम पर रखा गया है।

विष्णुप्रयाग की प्रमुख मान्यता के अनुसार यहां ऐसा कहा जाता है कि देवर्षि नारद जी ने इसी स्थान पर भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी और तपस्या में नारद जी ने अष्टाक्षरी मंत्र का जप किया था।

इस जप के पूर्ण होने के पश्चात साक्षात भगवान विष्णु स्वयं नारद मुनि को दर्शन देने के लिए इस स्थान पर देवर्षि नारद जी के समक्ष प्रकट होकर उन्हें दर्शन देने आए थे। 

विष्णुप्रयाग में इसके दाएं और बाएं तरफ दो पर्वत स्थित है। इन दोनों पर्वतों को भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय के रूप में देखा जाता है। इन दोनों पर्वतों में से जो पर्वत दायीं ओर स्थित है उसे जय और जो पर्वत बायीं ओर को स्थित है उसे विजय माना जाता है।

विष्णुप्रयाग को नारद जी की तपस्थली कहा जाता है क्योंकि देवर्षि नारद जी ने यहां भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी। भगवान विष्णु से भी पहले ये स्थान देवर्षि नारद जी को दिखाई दिया।

विष्णु पुराण में भगवान विष्णु का एक बहुत प्राचीन और दिव्य मंदिर स्थित है। इस अद्भुत मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने सन् 1889 में कराया था।

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श्री विष्णु मंदिर

विष्णु प्रयाग पर स्थित भगवान विष्णु को समर्पित ये मंदिर बहुत ही दिव्य और अलौकिक है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु ने नारद जी को आशीर्वाद दिया था।

इस विशेष मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही मन को अद्भुत शांति और हृदय को आनंद महसूस होता है। इस मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की एक अद्भुत प्राचीन मूर्ति विराजमान है।

श्री नरसिंह मंदिर

विष्णुप्रयाग में श्री नरसिंह भगवान का भी एक दिव्य मंदिर स्थित है। श्री नरसिंह मंदिर जोशीमठ की एक बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत है। भगवान श्री बद्रीनाथ की गद्दी शीतकालीन प्रवास में यहीं इसी स्थान पर विराजमान होती है।

पुराणों के अनुसार श्री नरसिंह भगवान जी के दर्शन के बाद ही श्री बद्रीविशाल के दर्शनों की परंपरा है। प्राचीन काल में इस नगरी को कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था।

हनुमान चट्टी

हनुमान जी का ये प्राचीन मंदिर बद्रीनाथ धाम से कुछ ही किलोमीटर पहले स्थित है। एक पौराणिक व्याख्यान के अनुसार हनुमान जी ने इस स्थान पर तपस्या की थी।

त्रेता युग के बाद द्वापर युग में जब पांडव इस क्षेत्र में विचरण कर रहे थे तो उन्होंने भी हनुमान जी को इसी स्थान पर तप करते हुए देखा था। इस मंदिर के पीछे हनुमान जी और पांडु पुत्र भीमसेन के मध्य की कहानी है प्रचलित है।

आज भी बद्रीनाथ जाने वाले यात्री यहां पर पूजा अर्चना करने के पश्चात ही आगे बढ़ते हैं।विष्णुप्रयाग बहुत ही अद्भुत स्थान है। यहां पर बहुत से ऐसे स्थान हैं जहां आप घूमने जा सकते हैं साथ ही साथ धार्मिक स्थलों का दर्शन लाभ भी उठा सकते हैं।

विष्णुप्रयाग में विष्णु कुंड, ब्रह्मा कुंड, गणेश कुंड, भृंगी कुंड, ऋषि कुंड, सूर्य कुंड, दुर्गा कुंड, ध्रंधा कुंड और प्रहलाद कुंड स्थित हैं और अलकनंदा-धौलीगंगा संगम आदि प्रमुख स्थान हैं।

यदि आप जोशीमठ में ठहरते हैं तो आपको और भी बहुत से स्थान घूमने योग्य मिल जाएंगे जैसे कि औली रोपवे, हाथी पर्वत, कल्पवृक्ष, भविष्य बद्री, गणेश गुफा, व्यास गुफा, भीमपुल, भविष्य केदार, और तपोवन जोशीमठ आदि स्थानों का लुफ्त भी उठा सकते हैं।

यदि आप घूमने के शौकीन हैं तो आपको एक बार उत्तराखंड अवश्य जाना चाहिए। यहां धार्मिक स्थलों के साथ-साथ बहुत से रोमांचक स्थल भी मौजूद हैं। ऊंचे पर्वत, स्वच्छ नदियों, निर्मल झरनों, झीलों, फूलों की घाटियों से घिरे हुए इस उत्तम स्थान में मानो प्रकृति ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया हो। 

यहां आकर आपको प्रकृति के सभी रंग देखने को मिलेंगे। ये एक बहुत ही अधिक सुंदर स्थान है। यदि आप छुट्टियों में कहीं जाना चाहते हैं या फिर रोजमर्रा की जिंदगी से आप थक चुके हैं, तो ये स्थान आपके लिए बिल्कुल उचित है।

यहां आप अपने भीतर एक नई ऊर्जा महसूस करेंगे। ये वो स्थान है जहां पर आप अपनी सारी थकान सारी परेशानी भूलकर आप स्वयं को बहुत ही तरोताजा और स्फूर्ति से भरा महसूस करेंगे।

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