sharda river

उत्तराखंड की शारदा नदी को क्यों कहा जाता है काली नदी, जानें इसके पीछे का रहस्य

उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली काली या शारदा नदी उत्तराखंड की प्रमुख नदियों में से एक है। शारदा नदी का उद्गम उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में हिमालय की पर्वत श्रृंखला से होता है। भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित माता काली के मंदिर से इसे कालीपानी के नाम से जाना जाता है।

इसी कारण से इस नदी को काली या महाकाली गंगा नाम से पुकारा जाता है। शारदा नदी उत्तराखंड की सबसे लंबी नदी है। ये नदी उत्तराखंड की मुख्य चार नदियों में से एक है, इसी वजह से इसे उत्तराखंड के राज चिन्ह पर भी दर्शाया गया है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मुख्य रूप से शारदा नदी उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में बहती है, जहां पर ये कई अन्य नदियों से संगम करते हुए अंत में यमुना नदी को माध्यम बनाकर प्रयागराज में गंगा नदी में समाहित हो जाती है। 

पर्वत श्रृंखला से उतरने के पश्चात काली नदी ब्रह्मदेव के निकट समतल क्षेत्र में प्रवेश करती है उत्तराखंड की चार मुख्य नदियों में शामिल काली नदी मुख्य रूप से धारचूला, जौलजीबी, महेंद्र नगर, झुलाघाट, तवाघाट, टनकपुर वा पंचमेश्वर नामक क्षेत्रों से गुजरती है।

ये नदी पीलीभीत में नेपाल और भारत की सीमा को अलग करती है। इसके अलावा काली नदी उत्तराखंड स्थित पूर्णागिरि धाम की पहाड़ियों पर भी प्रवाहित होती है। ये  नदी भारत के अलावा नेपाल देश के भी कई क्षेत्रों में बहती है। शारदा नदी भारत और नेपाल के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाती है।

सहायक नदियां

शारदा नदी अपने उद्गम स्थान से निकलने के कुछ दूर पश्चात से ही अपनी सहायक पहाड़ी नदियों धर्मा व लिसार को अपने संग समेटती हुई आगे बढ़ती है।

काली गंगा के रूप में अपने सफर की शुरुआत करने के पश्चात लगभग 160 किलोमीटर तक प्रवाहित होने के बाद ये नदी पंचमेश्वर के समीप सरयू व पूर्वी रामगंगा नदी से आकर के मिल जाती है।

इसी स्थान से इस नदी को शारदा या सरयू नदी के नाम से पहाड़ियों में चक्करदार मार्ग से होकर ब्रह्मदेव के निकट मैदानी भाग में प्रवेश करती है। यहां पर ये कई भागों में बंट जाती है, लेकिन आगे चलकर मुढ़िया के निकट इसके सभी प्रवाह मार्ग पुनः एक हो जाते हैं। 

इसके पश्चात बहराम घाट के पास शारदा नदी, घाघरा व करनाली नदी में मिलती है, जिनके संग बहते हुए शारदा नदी यमुना नदी में समाहित हो जाती है और यमुना की अन्य सहायक नदियों की तरह ही ये भी प्रयागराज में संगम तट पर गंगा नदी व सरस्वती नदी(अदृश्य) से संगम पर मिल जाती है।

शारदा नदी की यात्रा में धौलीगंगा, चमेलिया, रामगुण, लढिया, जैसी अन्य कई छोटी-छोटी नदियां भी इस नदी में आकर के समा जाती है। सरयू नदी, काली नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।

संगम

Sharda River

तवाघाट में धौलीगंगा नदी, काली नदी में दाईं ओर से आकर मिलती है। आगे चलकर काली नदी धारचूला नगर से होकर गुजरती है और जौलजीबी नामक स्थान पर गोरी नदी से संगम करती है। ये स्थान एक वार्षिक मेले के लिए जाना जाता है।

इसके पश्चात शारदा नदी पंचेश्वर पहुंचती है। पंचेश्वर में इस नदी से सरयू नदी दाई ओर से आकर की मिलती हैं। सरयू नदी, शारदा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। पंचेश्वर के आसपास के क्षेत्र को काली कुमाऊं कहा जाता है।

काली नदी जोगबुधा घाटी के पास पहाड़ों से नीचे मैदानी क्षेत्र पर उतरती है। जिस स्थान पर इस नदी से दाईं ओर से लाढिया  एवं बाईं ओर से रामगुण नदी आकर मिलती है। इसके पश्चात से इस नदी को शारदा नदी के नाम से पहचाना जाता है।

टनकपुर नगर में नदी में इस नदी पर एक बड़ा बांध बना है। जिससे पानी एक सिंचाई नहर की ओर भेजा जाता है। आगे चलकर ये नदी करनाली नदी से मिलती है, और बहराइच जिले में पहुंचने पर ये एक नए नाम सरयू से जानी जाती है।

सरयू नदी आगे चलकर गंगा नदी में मिल जाती है।इस नदी के तट पर तवाघाट, धारचूला, जौलजीबी, झूलाघाट, पंचेश्वर, टनकपुर, बनबसा, और महेंद्र नगर आदि प्रमुख नगर स्थित हैं। शारदा नदी गंगा नदी प्रणाली का एक हिस्सा है। ये नदी जल विद्युत उत्पादन के लिए अपार संभावना उपलब्ध कराती है। 

पंचेश्वर परियोजना

उत्तराखंड राज्य में भारत और नेपाल सीमा पर स्थित एक बहुउद्देशीय बिजली परियोजना है। काली नदी पर उत्तराखंड के चंपावत जनपद में निर्माणाधीन ये परियोजना जोकि भारत-नेपाल के मध्य एक सामूहिक परियोजना है।

इसका कार्य सन् 2018 से आरंभ हो गया था। जो कि अब 2026 तक पूर्ण होने की संभावना है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 2028 तक इससे विद्युत उत्पादन प्रारंभ हो जाएगा।

इस योजना के अंतर्गत दो बांध बनने प्रस्तावित हुए हैं। सिंचाई एवं जल विद्युत ऊर्जा के लिए काली और सरयू नदी के संगम पर प्रस्तावित 315 मीटर की ऊंचाई वाला पंचेश्वर बांध भारत का सबसे बड़ा बांध होगा।

इस बांध से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर रूपालीगाड़ और काली नदी के संगम पर बनने वाला रूपलीगाढ़ बांध। एक बार इनका शुभारंभ होने के पश्चात ये दोनो बांध क्रमशः 6480 एवं 240 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेंगे।

गौरतलब है कि उत्तराखंड में ऐसी जगह, नदियां और पहाड़ हैं जिनका अपना एक अलग महत्व है। यही नहीं उत्तराखंड में जो प्राकृतिक सौंदर्य का एहसास होता है वो शायद ही कहीं और देखने व महसूस करने मिलेगी।

वहीं ज़ाहिर है कि उत्तराखंड की विरासत बेहद अमूल्य है जो आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर है।

>>>> जानिए बीटल्स आश्रम के बारे में जहां ‘The Beatles’ को मिली आध्यात्मिक जागृति

Leave a Comment

Recent Posts

Follow Uttarakhand99