पंचकेदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर अपनी अलौकिकता को लिए हुए विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है।
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले के तुंगनाथ पर्वत पर बना ये मन्दिर समुद्रतल से 3,680 मीटर की ऊंचाई पर है।
यह मंदिर गोपेश्वर से 45 किलोमीटर तथा चमोली से 55 किलोमीटर की दूरी पर है। अगर आप यहां पहुंचना चाहते हैं तो सबसे पहले रुद्रप्रयाग जिले की एक सुंदर जगह चोपता पहुंचना होगा, फिर वहां से आप सीधे इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
हिमालय की प्राकृतिक खूबसूरती के बीच बना ये अलौकिक मंदिर कई पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
आपको बता दें कि चार धाम की यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए ये मंदिर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। वही ये भी जानना जरूरी है कि तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा शिव मंदिर है और साथ ही इस मंदिर को करीब 5000 साल पुराना माना जाता है।
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास:
अगर तुंगनाथ मंदिर का इतिहास देखा जाए तो इससे जुड़ी कई कहानियां है। ऐसा कहा जाता है कुरुक्षेत्र युद्ध में अपने भाइयों का वध करने के बाद पांडवो ने भगवान शिव की खोज में यात्रा शुरू की।
क्योंकि भगवान शिव कौरवों की मौत से नाराज थे। शिवजी पांडवों से मिलने से बचना चाहते थे इसीलिए वो एक बैल में बदल गए। यही नहीं अपने शरीर के सभी अंगों को जमीन पर अलग-अलग जगहों पर बिखेर कर अंतर्ध्यान हो गए।
आपको बता दें कि उनके पीठ की आकृति पिंड रूप में केदारनाथ में, बाहु तुंगनाथ में, सिर रुद्रनाथ में पेट और नाभि मध्यमहेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में दिखाई दिए।
उसके बाद उसी जगह पांडवों ने भगवान शिव की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने हेतु एक मंदिर बनवाया और उस मंदिर का नाम तुंग के रूप में लिया गया। दरअसल इसका अर्थ हथियार और नाथ भगवान शिव का प्रतीक है।
होती है महादेव के ह्रदय और भुजाओं की पूजा :
भारत में अनेकों शिवालय हैं जहाँ हम सबके स्वामी भोलेनाथ वास करते है। पर हमारे देश में एक ऐसा शिव धाम भी है जहाँ देवों के देव महादेव के ह्रदय और भुजाओं की पूजा-अर्चना होती है।
मंदिर परिसर में देवी पार्वती के साथ-साथ अन्य देवी-देवता भी विराजमान हैं। जिनमें ग्यारह लघुदेवियाँ हैं, जिन्हें द्यूलियाँ कहा जाता है। मंदिर में ऋषि व्यास और आदिगुरु शंकराचार्य की मूर्तियाँ हैं। भूतनाथ का मंदिर भी यहीं है।
मैथानी ब्राह्मण करते हैं पूजा :
मक्कामाथ गांव के स्थानीय ब्राह्मण तुंगनाथ मंदिर के पुजारी हैं। मान्यता है कि मैथानी ब्राह्मणों को यह दायित्व विरासत में प्राप्त हुआ है। पूर्व से ही मैथानी ब्राह्मण शिवजी के ह्रदय और भुजाओं की पूजा करते आये है।
मंदिर निर्माण की कथा :
लोगों का मानना है की कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार से महादेव बहुत ही रुष्ट थे इसलिए पाण्डवों ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया था।
माता पार्वती ने भी शिवजी को पति रूप में पाने के लिए इसी जगह तपस्या की थी ऐसी मान्यता है।
निकाला जाता है दिवारा :
▪️माघ के महीने में तुंगनाथ का दिवारा निकाला जाता है। लोगों के बड़ी संख्या में भीड़ लगती है और ढोल-बाजों के साथ पंचकोटि गाँव का फेरा लगता है।
▪️इस स्थान पर रावणशिला और रावणमठ भी स्थापित हैं। ऐसी मान्यता है कि रावण ने यहीं तपस्या कर भगवान शंकर को प्रसन्न किया था। वरदानस्वरूप भोले बाबा ने उसे असीमित शक्ति और भुजबल प्रदान किया।
प्रभु श्रीराम ने यहां किया था तप :
तुंगनाथ से थोड़ी ही दूर लगभग दो सौ मीटर अधिक ऊंचाई वाली एक अन्य पहाड़ी पर भगवान राम ने रावण का वध करने के पश्चात स्वयं को ब्राह्मण हत्या के श्राप से मुक्त करने के लिए चंद्रशिला पर तप किया था।
केदारनाथ के शिखर और चौखम्भा का यहाँ से अनोखा दर्शन प्राप्त होता है।
मंदिर परिसर का अद्भुत वातावरण:
मंदिर परिसर का वातावरण अत्यंत ही शान्तियुक्त और आकर्षक है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण नवीं शताब्दी में हुआ था।
तुंगनाथ का ये मंदिर अपने अपूर्व सौन्दर्य और अतुलनीय वास्तुशिल्प के लिए भी जाना जाता है। इसकी ख्याति समस्त विश्व में है।
कब खुलते है कपाट:
उत्तराखंड के चार धामों के कपाट खुलने के साथ ही अप्रैल-मई महीने में तुंगनाथ के कपाट भी खोले जाते हैं। दीपावली के बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है।
कब जाएं तुंगनाथ मंदिर:
तुंगनाथ के दर्शन के लिए सबसे उत्तम समय मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर का है। भारी बारिश के कारण जुलाई और अगस्त के महीनों में यहाँ जाना सुलभ नहीं है।
अभी कुछ समय से सर्दी के महीनों में भी यहाँ दर्शन के लिए जाने का चलन बढ़ा है क्योंकि इस समय यहाँ बहुत बर्फ़बारी होती है।
भक्ति और उत्साह से युक्त होकर प्रतिवर्ष भक्तों की भीड़ यहाँ लगती है। यहाँ की यात्रा बहुत आनंददायक है।
कैसे पहुंचे तुंगनाथ के द्वार :
▪️ अगर आप हवाई यात्रा के माध्यम से तुंगनाथ मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो आपको बता दें कि चोपता से सबसे ज्यादा नजदीक जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है।
इस हवाई अड्डे के माध्यम से चोपटा, ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग और ऊखीमठ के लिए आप टैक्सी ले सकते हैं।
▪️ अगर आप रेल मार्ग से तुंगनाथ मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो कि करीबन 209 किलोमीटर की दूरी पर है।
आपको बता दें ऋषिकेश से आप आसानी से टैक्सी या बस के द्वारा तुंगनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
▪️ इसके अलावा अगर आप तुंगनाथ मंदिर की यात्रा के लिए सड़क मार्ग से जाने का सोच रहे हैं तो आपको हम बता दें कि उत्तराखंड सड़क मार्ग के माध्यम से अपने आसपास के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है।
इससे आप अपने निजी साधन के द्वारा या फिर परिवहन बसों के माध्यम से तुंगनाथ मंदिर की यात्रा कर सकते हैं।
तुंगनाथ मंदिर जो कि भगवान शिव का सबसे बड़ा मंदिर है, निश्चित ही श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक केंद्र बना हुआ है। यही नहीं उत्तराखंड की वादियों में स्थित ये मंदिर स्वयं में एक अलौकिक सौंदर्य समेटे हुए हैं। यही कारण है किस शिव भक्तों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
Click here to read motivational stories:
Click here to read Success stories:
Click here to read religious stories:
Feature image: mygoodtrip