उत्तराखंड राज्य में चमोली जिले की सीमा के अंत में देवाल विकासखंड में समुद्र तल से लगभग 5029 की ऊंचाई पर नंदा देवी राजजात मार्ग पर नंदाघुंगटी और त्रिशूल जैसे विशाल हिमशिखरों के मध्य में एक मनोरम दृश्य के साथ मनोहारी रूपकुंड झील स्थित है।
ये हिमालय की दो चोटियों के तल के पास ये खूबसूरत पर्यटन स्थल स्थित है। त्रिशूली शिखर की गोद में च्युनरागली दर्रे के नीचे लगभग 12 मीटर, लंबी 10 मीटर चौड़ी, और 2 मीटर से अधिक गहरी हरे, नीले रंग की अंडाकार आकृति वाली ये झील वर्ष में करीब छः महीनों तक बर्फ से पूरी तरह ढकी रहती है।
इसी झील से रूप गंगा की धारा भी निकलती है। झील की सबसे बड़ी खासियत तो ये है कि इस झील के चारों दिशाओं में रहस्यमयी प्राचीन नर कंकाल, अस्थियां, विभिन्न उपकरण, कपड़े, गहने, बर्तन, चप्पल आदि पाए जाते जैन। इसलिए इसे रहस्यमई झील के नाम से जाना जाता है।
कुछ लोग ऐसा कहता है कि ये नर कंकाल किसी राजा की सेना के सिपाहियों के हैं। तो कोई कोई इनका संबंध सिकंदर के दौर से जोड़ता है। परंतु सच तो अभी भविष्य के गर्भ में ही है।
वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए 9 नए शोध में ऐसा बताया गया है कि ये नर कंकाल सिकंदर के जमाने से 250 वर्ष पुराने हैं। क्योंकि सिकंदर से पहले भी गरीब देशों के लोग भी यहां एक बार घूमने आए थे।
इस शोध के लिए नर कंकालों के 100 सैंपल को कि ऑटोसोमल, डीएनए माइटोकांड्रियल और वाई क्रोमोसोम्स डीएनए जांच कराई गई जिसमें इस बाय का पता चला कि यह ग्रीक लोगों के कंकाल है साथ ही कुछ कंकाल स्थानीय लोगों के भी हैं।
इस नतीजे तक पहुंचने के लिए शोध टीम ने आसपास के कई इलाकों के करीब 800 लोगों के भी डीएनए जांच की।
दरअसल इसी से इन सभी नर कंकालों के ग्रीक और स्थानीय लोगों के होने की पुष्टि हुई है।
इससे पूर्व वैज्ञानिकों ने ये निष्कर्ष निकाला था कि नर कंकाल सिकंदर की सेना की टुकड़ी के भी हो सकते हैं।आपको बता दें कि बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों के हिसाब से सैंपल की डीएनए जांच से ग्रीक से इनका मिलान हो रहा है। परंतु इसमें अभी और जांच करने की आवश्यकता है।
इसके साथ ही साथ एंथ्रो और लॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जल्द से लगभग ही एक और प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है। अब आगे देखना है कि इन नर कंकालों को लेकर और कौन-कौन सी क्या क्या बातें सामने आती हैं।
पौराणिक मान्यता

चमोली जिले में प्रत्येक 12 साल में नॉटी गांव से नंदा देवी राजजात का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा से संबंधित कथा के के विषय में परम सुंदरी हिमालय पुत्री नंदा देवी जब शिव जी के साथ बिलखती हुई कैलाश को जा रही थी, तब मार्ग में उन्हें एक स्थान पर बहुत जोर की प्यास लगी।
नंदा देवी के सूखे होंठ देख शिवजी ने चारों ओर नजर दौड़ाई लेकिन उन्हें कहीं पर भी पानी नहीं दिखा। तो उन्होंने अपना त्रिशूल धरती पर मारा जिससे वहां पानी का फव्वारा फूट पड़ा। देवी नंदा जब प्यास बुझा रही थी तब उन्हें पानी में एक रूपवती स्त्री का प्रतिबिंब नजर आया।
जो शिवजी के साथ एकाकार थी। नंदा को चौकता देख शिवजी उनके अंतर मन की बात को समझ गए और वे उनसे बोले ये तुम्हारा ही रूप है, तब से ही ये कुंड रूपकुंड शिव अर्धनारीश्वर और यहां के पर्वत, त्रिशूल, व नंदा घुंगटी कहलाए।
रूपकुंड में नर कंकाल की खोज सर्वप्रथम सन 1942 में नंदा देवी रिजर्व के गेम रेंजर हरि कृष्ण मधवाल ने की थी मधवाल दुर्लभ पुस्तकों की खोज में यहां आए थे।
इसी दौरान जाने अनजाने में ही वे इस झील के भीतर किसी चीज से टकरा गए जब उन्होंने वहां देखा तो एक कनकालथा झील के आसपास और तलहटी में भी नर कंकालों का ढेर मिला। ऐसा देख रेंजर मार्बल के साथियों को ये लगा कि कैसे वो किसी दूसरे ही लोक में आ गए हैं।
उनके साथ चल रहे मजदूर तो इस दृश्य को देखते ही भाग खड़े हुए। इसके पश्चात् वैज्ञानिक अध्ययन का दौर सन 1950 में शुरू हुआ।
कुछ अमेरिकी वैज्ञानिक नर कंकाल अपने साथ लेकर अब तक कई जिज्ञासु अन्वेषक दल भी इस क्षेत्र की ऐतिहासिक यात्रा पर आ चुके हैं। विशेषज्ञों के एक दल ने यहां पहुंचकर निरीक्षण भी किया।
उत्तर प्रदेश वन विभाग के एक अधिकारी ने सितंबर, सन 1955 में रूपकुंड क्षेत्र का दौरा किया और कुछ नर कंकाल,अस्थियां, चप्पल, आदि वस्तुएं एकत्रित कर उन्हें परीक्षण के लिए प्रसिद्ध मानव शास्त्री एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के मानव शास्त्र विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर डीएन मजूमदार को सौंप दिया था।
बाद में डॉ मजूमदार स्वयं भी इस स्थान पर आए थे। ये यहां से कई सामग्री एकत्रित कर अपने साथ ले गए उन्होंने इस सामग्री को 400 साल से कहीं अधिक पुरानी होने का दावा किया और बताया कि यह 80 अवशेष किसी तीर्थ यात्री दल के हैं।
डॉ मजूमदार ने सन 1957 में यहां मिले मानव हड्डियों के नमूने अमेरिकी मानव शरीर विशेषज्ञ डॉक्टर को भेजें जिन्होंने रेडियो कार्बन विधि से परीक्षण का इनको 400 साल पुरानी बताया है।
ब्रिटिश और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी यही पाया है। कि अवशेषों में तिब्बती लोगों के ऊन से बने बूट, लकड़ी के बर्तन व टुकड़े घोड़े की साबुत वालों पर सूखा चमड़ा और चटाइयों के टुकड़े शामिल है । याक के अवशेष भी यहां मिले हैं।
उनकी पीठ पर तिब्बती अपना सामान लादकर यात्रा करते रहे हैं। अवशेषों में खास वस्तु बड़े-बड़े दानों की हमेल है, जिसे लामा स्त्रियां पहनती थी। वर्ष 2004 में भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने भी संयुक्त रूप से झील का रहस्य खोलने का बहुत प्रयास किया।
अभी भी शोध जारी है, नेशनल ज्योग्राफिक के शोधार्थी भी 30 से ज्यादा नर कंकालों के नमूने इंग्लैंड ले गए बावजूद इसके ये कार्य अब तक भी बरकरार है।यात्रियों के लिए रूपकुंड जाने के अनेक रास्ते हैं।
बर्फ से ढकी हुई इस झील तक पहुंचने का रास्ता एक बहुत ही सुखद अनुभव देता है। पूरे रास्ते भर आप अपने आपको चारों ओर से पर्वत श्रृंखलाओं से गिरा हुआ पाएंगे।ये हरे नीले रंग की झील देखने में अत्यंत खूबसूरत लगती है। ये झील जितनी सुंदर है उतनी ही रहस्यमयी भी है।
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