भागीरथी नदी भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है, जोकि उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जनपद के गंगोत्री हिमनद के गोमुख से निकलती है। भागीरथी नदी पश्चिम बंगाल राज्य, पूर्वोत्तर भारत, गंगा नदी के डेल्टा की पश्चिमी सीमा का निर्माण करती है।
ये गंगा की एक सहायक नदी कहलाती है। भागीरथी नदी गंगा से जंगीपुर के ठीक पूर्वोत्तर में इससे अलग हो जाती है, और 190 किलोमीटर के बहाव के बाद नवद्वीप में जलंगी से मिलकर हुगली नदी का निर्माण करती है। पौराणिक सांस्कृतिक कथाओं के अनुसार भागीरथी नदी गंगा की उस शाखा को कहते हैं, जो गढ़वाल(उत्तराखण्ड) में गंगोत्री से निकलकर देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है और साथ ही गंगा का नाम प्राप्त करती है।
बता दें कि भागीरथी नदी को किरात नदी के नाम से भी जाना जाता है। ये नदी देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है भागीरथी यहां 25 किलोमीटर लंबे गंगोत्री हिमनद से निकलती है तथा 205 किलोमीटर बहने के बाद भागीरथी व अलकनंदा का देवप्रयाग में संगम होता है, जिसके पश्चात ये सबसे पवित्र गंगा नदी के रूप में जानी जाती है।
भागीरथी नदी गोमुख स्थान से 25 किलोमीटर लंबे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। ये स्थान उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। ये स्थान समुद्र तल से लगभग 618 मीटर की ऊंचाई पर है और ऋषिकेश से इसकी दूरी लगभग 70 किलोमीटर है।
भागीरथी की सहायक नदियां
- रूद्रगंगा: ये नदी गंगोत्री ग्लेशियर के पास रूद्रगेरा ग्लेशियर से निकलती है।
- केदारगंगा: ये नदी केदारताल से निकलकर गंगोत्री में जाकर भागीरथी नदी से मिल जाती है।
- जाडगंगा / जाह्नवी: यह नदी भैरोघाटी नामक स्थान पर भागीरथी नदी सजा मिलती है।
- सियागंगा: ये नदी झाला नामक स्थान पर जाकर गंगा नदी से मिल जाती है।
- असीगंगा: ये नदी गंगोरी में भागीरथी नदी से मिलती है।
- भिलंगना: ये नदी खतलिंग ग्लेशियर टिहरी से निकलकर गणेश प्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है। अब यह संगम टेहरी डैम में डूब चुका है।
- भिलंगना की सहायक नदियां: मेडगंगा, दूधगंगा, बालगंगा।
- अलकनंदा: ये नदी देवप्रयाग में भागीरथी से जा मिलती हैं तथा दोनों एक साथ मिलकर गंगा नदी बनाती हैं अर्थात आगे बढ़कर गंगा नदी के नाम से जानी जाती हैं।
भागीरथी नदी का इतिहास

शताब्दी तक भागीरथी नदी में गंगा का मूल के पश्चात नवद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। 16 वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह था किंतु इसके पश्चात गंगा का मुख्य बहाव पूर्व की ओर पद्मा में स्थानांतरित हो गया।
किसी एक समय में इसके तट पर बंगाल की राजधानी रहे मुर्शिदाबाद सहित बंगाल के कई महत्वपूर्ण मध्यकालीन नगर बसे हुए थे। भारत में गंगा पर फरक्का बांध बनाया गया। ताकि गंगा-पद्मा नदी का कुछ पानी अपक्षय होती भागीरथी-हुगली नदी की ओर मोड़ा जा सके। जिस पर कोलकाता पोर्ट कश्मीर के कोलकाता और हल्दिया बंदरगाह स्थित है। भागीरथी पर बहरामपुर में एक पुल बना है।
भागीरथी से जुड़ी पौराणिक कथा
भागीरथी नदी के विषय में एक पौराणिक कथा विश्व विख्यात है। राजा भगीरथ की तपस्या के फलस्वरूप गंगा के अवतरण की ये कथा सभी जानते हैं। आपको बता दें कि शत्रुओं ने राजा बाहुक का राजपाठ छीन लिया था। वे अपनी पत्नी के साथ को वन चले गए। वृद्धावस्था के कारण वन में ही उनकी मृत्यु हो गई।
उनके गुरु ओर्व ने उनकी पत्नी को सती नहीं होने दिया क्योंकि वह जानते थे कि वह गर्भवती है। उसकी सौतनों को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। बता दें कि इस विष का गर्भ पर कोई भी असर नहीं पड़ा। बालक विष (गर) के साथ ही उत्पन्न हुआ इसी कारण से वो स + गर = सगर कहलाया। बड़ा होने पर उसका विवाह 2 कन्याओं सुमति और केशिनी से हुआ।
राजा सगर की पहली पत्नी सुमति के गर्व से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हजार पुत्रों का जन्म हुआ। तथा राजा सगर की दूसरी पत्नी केशिनी के गर्भ से असमंजस नाम का एक पुत्र उत्पन्न हुआ। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया।
इस अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा देवराज इंद्र ने उनके यज्ञ से चुरा लिया तथा रसातल में जाकर कपिल मुनि के पास ले जाकर खड़ा कर दिया। उधर राजा सगर ने सुमित के पुत्रों को घोडेबकी खोज में भेजा 60000 राजकुमारों को कहीं भी घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सभी और से पृथ्वी खोद डाली।
पूर्व-उत्तर दिशा में कपिल मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाए तथा मुनि को भला बुरा कहते हुए उनकी ओर बढ़ने लगे। फलस्वरुप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसमें वे सब भस्म हो गए। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस था।
असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। असमंजस पूर्व जन्म में योग भ्रष्ट हो गया था। उसकी स्मृति खोई नही थी। अतः वह सब से विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को सरयू नदी में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसका त्याग कर दिया।
उसने अपने योगबल से सभी बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन को चला गया। ये देखकर सभी को बहुत पश्चाताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा।
अंशुमान उस घोड़े को ढूंढता ढूंढता कपिल मुनि के आश्रम पहुंचा उनके चरणों में प्रणाम करके उसने विनय पूर्वक स्तुति की। कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर उसे घोड़ा वापिस दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए आपके सभी चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा।
अंशुमान ने जीवन पर्यंत तपस्या की किंतु वे गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाए। उसके पश्चात अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र भागीरथ तप से प्रसन्न होकर आना स्वीकार किया कि वे अपनी जटाओं में भगीरथ के पीछे-पीछे तक पहुंची भागीरथी का उद्धार किया।
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