उत्तराखंड को देवभूमि की उपाधि दी गई है यही कारण है कि यहां कई पवित्र स्थल और नदियां पाई जाती हैं। उनमें से ही एक नदी है, यमुना नदी। आपको बता दें कि देवी यमुना का मंदिर उत्तरकाशी जिले में स्थित है जिसे यमुनोत्री के नाम से जाना जाता है।
ये समुद्र तल से लगभग 3,235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यमुना नदी को लेकर शास्त्रों में कई मान्यताएं हैं, साथ ही उन्हें भी देवी की संज्ञा दी गई है।
यमुनोत्री की महिमा पुराणों तक में गाई गई है। पुराणों में यमुना देवी को सूर्यतनया कहा गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है सूर्य की पुत्री अर्थात यमुना। सूर्य नारायण की दो पत्नियों छाया और संज्ञा से यमुना, यम, शनि देव, और वैवस्वत मनु प्रकट हुए थे।
इस प्रकार से यमुना, यमराज और शनिदेव की बहन हैं। भैया दूज पर यमुना के दर्शन और मथुरा में इनके जल में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। यमुना देवी सर्वप्रथम जल स्वरूप से कलिंद नामक पर्वत पर आई थी। इसी कारण से इनका एक नाम कालिंदी भी है।
सप्त ऋषि कुंड या सप्त सरोवर, कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। पुराणों की मार तो यमुनोत्री धाम समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री कृष्ण की अष्ट पटरानियों में से एक प्रिय पटरानी कालिंदी यमुना जी भी हैं।
यमुना महारानी के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीन मंदिर खरसाली में स्थित है। इसी मान्यता है कि जो व्यक्ति यमुनोत्री धाम आकर या पवित्र जल में स्नान करता है और यमुनोत्री के सानिध्य खरसाली में शनिदेव का दर्शन करता है। उसके व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।
यमुनोत्री में सूर्य कुंड, दिव्य शिला, और विष्णु कुंड के केवल स्पर्श और दर्शन मात्र से ही लोग समस्त पापों से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त हो जाते हैं।
जानिए क्या है इतिहास
एक पुरानी कथा के अनुसार ये स्थान असित मुनि का निवास स्थान था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने सन 19वीं सदी में इसका निर्माण करवाया था एक बार भूकंप से इसका विध्वंस भी हो चुका है जिसका पुनर्निर्माण कराया गया।
यमुनोत्री तीर्थ उत्तरकाशी जिले के बड़कोट तहसील में ऋषिकेश से 251 किलोमीटर एवं उत्तरकाशी से 131 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये तीर्थ यमुनोत्री हिमनद से लगभग 5 मील नीचे दो वेदवती जल धाराओं के मध्य एक कठोर सेल पर है।
इस स्थान पर प्रकृति का एक अद्भुत आश्चर्य देखने को मिल है। यहां तक जल धाराओं का चट्टान से भटकते हुए ओम सदृश्य ध्वनि के साथ निःस्तरण है।
तलहटी में दोस्तों के बीच जहां गर्म जल का स्रोत है। वहीं पर एक सक्रिय स्थान में जमुना जी का मंदिर भी स्थापित है। वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्री है। यमुनोत्री से कुछ ही पहले भैरव घाटी स्थित है इसकी स्थिति है। जहां पर भैरव बाबा का मंदिर है।
कई सारे पुराणों में यमुना तट पर होने वाली यज्ञ का तथा कूर्म पुराण में यमुनोत्री के महत्व का वर्णन है। केदारखंड में के अवतरण का विशेष उल्लेख मिलता है। इसे सूर्यपुत्री, यम सहोदरा, और गंगा यमुना को वैमातृक बहने कहा गया है।
ब्रह्मांड पुराण में यमुना को यमुनोत्री को जमुना प्रभाव तीर्थ कहा गया है ऋग्वेद में भी यमुना का उल्लेख देखने को मिलता है।
महाभारत के अनुसार जब पांडव उत्तराखंड की तीर्थ यात्रा में आए थे तो वे पहले यमुनोत्री से गंगोत्री तथा फिर केदारनाथ और बद्रीनाथ जी की और बड़े थे तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।
यमुनोत्री धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण रही है। यमुनोत्री पहुंचने पर यहां का मुख्य आकर्षण इस स्थान के तप्त कुंड व अन्य कुंड है। इनमें सबसे तक जलकुंड का स्रोत मंदिर से लगभग 20 फीट की दूरी पर स्थित है।
केदारखंड में वर्णित ब्रह्म कुंड जिसका नाम सूर्य कुंड हो गया जोकि गढ़वाल के सभी तप्त कुंड में से सबसे अधिक गर्म है। इससे एक विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है इसे ओम ध्वनि कहते है। वहीं इनमें थोड़ा गहरा स्थान है।
जिसमें आलू और चावल की पोटली डालने पर वे पूर्ण रूप से पक जाते हैं। सूर्य कुंड के निकट ही एक दिव्य शिला है। जहां उसने उष्ण जल नाली कि सी ढलान लेकर जल निचले गौरीकुंड में जाता है।
इस कुंड का निर्माण यमुना बाई ने कराया था इसलिए इसे जमुनाबाई कुंड कहते हैं। इसे काफी लंबा-चौड़ा बनाया गया है ताकि सूर्य कुंड का गरम जल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठंडा हो सके और यात्रीगण इसमें स्नान भी कर सकें गौरीकुंड के नीचे भी एक तप्त कुंड है।
यमुनोत्री से चार मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्त ऋषि कुंड भी की भी स्थिति बताई गई है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस कुंड के किनारे सदस्यों ने तपस्या किया दुर्गम रास्ता होने के कारण साधारण मनुष्य जहां तक नहीं पहुंच सकते।
कहां स्थित है यमुनोत्री

इस मंदिर प्रांगण में एक बहुत विशाल शिला बाद में स्तंभ है। जिसे दिव्य शिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर परिसर 3,235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां भी मई से अक्टूबर तक श्रद्धालु का अपार जनसमूह देखने को मिलता है।
ठंड के महीनों में ये स्थान पूर्णतया से हिमाछादित रहता है। यमुना मैया की तीर्थ स्थली यमुना के स्रोत पर स्थित है। ये तीर्थ गढ़वाल हिमालय के पश्चिम भाग में है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमीन हुई एक झील और हिमनद चंपासर ग्लेशियर है।
जो कि समुद्र तल से 4,421 मीटर की ऊंचाई पर कलिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किलोमीटर आगे जाना असंभव है क्योंकि यहां का मार्ग बहुत ही, दुर्गम है इसी कारण से देवी का मंदिर पहाड़ी के तल पर ही स्थित है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जमुना माता के मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल महाराजा प्रताप शाह द्वारा करवाया गया था अत्यधिक सकरी पतली यमुना का जल हिम शीतल है जमुना के इस जल की परिशुद्धता और पवित्रता के कारण भक्तजनों के हृदय में यमुना मैया के प्रति अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति का उदय होता है।
पौराणिक व्याख्यान के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर स्थित थी। यमुना देवी के मंदिर तक चढ़ाई का मार्ग वास्तव में बहुत दुर्गम और रोमांचितरोमांचक करने वाला है।
इस मार्ग पर अगल-बगल में स्थित आपको गगनचुंबी, मनोहारी, नंग धड़ंग बर्फीली चोटियां देखने को मिलेंगे, जो कि आकर्षण का बहुत बड़ा केंद्र है इस दुर्गम चढ़ाई के आसपास घने जंगलों की हरियाली मन को अपनी ओर आकर्षित करने वाली है।
वहीं अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर इस मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और फिर दीपावली के पर्व पर अपना बंद कर दिए जाते हैं। यमुनोत्री मंदिर के आसपास के क्षेत्र में गर्म जल के कई सारे स्रोत है। ये स्रोत अनेक कुंडों में जाकर के गिरते हैं। इन कुंडों में सबसे प्रसिद्ध कुंड सूर्य कुंड है।
ये कुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपड़े की पोटली में चावल और आलू बांधकर स्कूल के गर्म जल में पकाते हैं फिर उसके पश्चात देवी को प्रसाद चढ़ाने के बाद इन्हीं पकाए हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्तजन अपने घर ले जाते हैं।
सूर्य कुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला के नाम से भी कहते है। सभी करना भक्तगण, भगवती यमुना की पूजा करने से पहले वो उस शिला को पूजते हैं।
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