रुद्रनाथ मंदिर भारतवर्ष के देवभूमि उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक बहुत प्राचीन मंदिर है। जोकि पंचकेदारों में से चौथा केदार मंदिर है। आपको बता दें कि रुद्रनाथ मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 2290 मीटर है।
दिव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण ये मंदिर बहुत ही भव्य है। इस मंदिर में भगवान शिव के एकानन अर्थात केवल मुख की पूजा होती है और संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर में की जाती है।
रुद्रनाथ मंदिर के बिल्कुल सामने नंदा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां स्पष्ट दिखाई देती हैं, जो यहां के आकर्षण को और अधिक बढ़ा देती हैं।
मंदिर की दिव्यता

रुद्रनाथ मंदिर में प्रवेश से पहले यहां एक अद्भुत नारद कुंड बना हुआ है। इस कुंड में सभी यात्री सर्वप्रथम स्नान करके अपनी थकान मिटाते हैं और उसके पश्चात ही मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं।
रुद्रनाथ मंदिर का संपूर्ण परिवेश इतना अलौकिक और दिव्य है कि यहां के सौंदर्य को कोई भी शब्दों में बयां नहीं कर सकता। इस स्थान पर शायद ही ऐसी कोई जगह होगी जहां आपको हरियाली या फूल ना दिखे।
यहां जाते वक्त रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर मृग आदि जंगली जानवरों भी देखने को मिलते हैं। ये स्थान भोजपत्र एवं वृक्षों के अलावा ब्रह्मकमल से भी परिपूर्ण है। यहां की ऊंचाइयों में बहुतायत में ब्रह्मकमल देखने को मिलते हैं।
वैसे तो यहां के पुजारी जी यात्रियों की यथासंभव मदद करने का प्रयास करते हैं लेकिन आपको अपने खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं ही करनी होती है। जैसे की रात्रि विश्राम के लिए टेंट हो या डिब्बाबंद खाना हो।
रुद्रनाथ मंदिर के कपाट परंपरा के अनुसार ही खुलते बंद होते हैं। शीतकाल में छः महीने के लिए इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। तब तक रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है।
शीतकाल के दौरान रूद्रनाथ की पूजा गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में ही होती है। आप यहां की खूबसूरती का अंदाजा लगा रहे हैं लेकिन यकीन मानिए ये स्थान आपकी सोच से भी कहीं अधिक खूबसूरत है।
रुद्रनाथ मंदिर दर्शन हेतु यात्रा के लिए सर्वप्रथम आपको गोपेश्वर पहुंचना होगा जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक बेहद खूबसूरत और बहुत ही आकर्षक हिल स्टेशन है। यहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर स्थित है।
इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल यहां आकर्षण का बहुत बड़ा केंद्र है। गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन अवश्य करते हैं। इस मंदिर की खूबसूरती तो देखते ही बनती है और यही कारण है कि लोग नित्य निरंतर इस मंदिर की ओर आकर्षित होते रहते हैं।
गोपेश्वर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर सगर गांव है। वहां पर करीब 3 किलोमीटर की चढ़ाई के पश्चात पनार बुग्याल आता है। 10 हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार रुद्रनाथ यात्रा मार्ग का मध्य द्वार है।
यहां से रुद्रनाथ मंदिर की दूरी लगभग 11 किलोमीटर ही रह जाती है। ये एक ऐसा स्थान है जहां पर वृक्ष रेखा समाप्त हो जाती है और इस स्थान से मखमली घास के मैदान का सुहाना सफर शुरू होता है।
यहां पर आपको अलग-अलग किस्म की घास और फूलों की घाटियों के नजारे देखने को मिलेंगे जैसे जैसे ही यात्री ऊपर बढ़ते रहते हैं प्राकृतिक नजारा उतना ही ज्यादा खिला हुआ दिखने लगता है।
आपको बता दें कि इतनी ऊंचाई पर इस अलौकिक सौंदर्य को देख कर हर कोई आश्चर्य में रह जाता है। यहां के गांव के लोग अपने पशुओं के साथ यहां पर डेरा डाले रहते हैं। इस स्थान पर ये गांव के लोग यात्रियों को चाय आदि की व्यवस्था उपलब्ध कराते हैं।
पनार से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां का जो अद्भुत दर्शन होता है, वैसा शायद ही कहीं और से होता होगा अर्थात ऐसा दर्शन आप किसी और स्थान से नहीं कर सकते। नंदादेव, कामेट, त्रिशूली, नंदाघुंगटी आदि शिखरों का मनोरम दृश्य यहां बहुत ही नजदीक से देखा जा सकता है।
पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है। पित्रधार में भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान नारायण का मंदिर स्थित है। यहां पर यात्री अपने पितरों के नाम से पत्थर रखते हैं। इसी स्थान पर वनदेवी के भी मंदिर मौजूद है, जहां पर सभी यात्री श्रृंगार आदि का समान चढ़ाते हैं।
रुद्रनाथ की चढ़ाई पित्रधार में आकर समाप्त हो जाती है और इस स्थान से अब हल्की ढलान शुरू हो जाती है। रास्ते में आपको तरह-तरह के फूलों की खुशबू अपनी और आकर्षित करती महसूस होगी। यहां का नजारा भी बिल्कुल फूलों की घाटियों के नजारे का आभास कराता है।
पनार से पित्रधार होते हुए लगभग 10 से 11 किलोमीटर के सफर के पश्चात यात्री चौथे केदार रुद्रनाथ मंदिर में पहुंचता है। इस मंदिर में एक विशाल प्राकृतिक गुफा है, जिसमें भगवान शिव का दुर्लभ पाषाण मूर्ति स्थित है। इस मंदिर में शिवजी गर्दन टेढ़ी किए हुए हैं।
इसी मान्यता है कि यहां शिव जी की मूर्ति स्वयंभू है, अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी किसी को पता नहीं है। मंदिर के पास ही वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति स्थित है। मंदिर के एक तरफ पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे छोटे मंदिर भी मौजूद हैं।
रुद्रनाथ मंदिर जाने का उचित समय
रुद्रनाथ मंदिर के कपाट यूं तो मई के महीने में ही खुलते हैं और छः महीने के पश्चात दीपावली तक कपाट पुनः बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में यहां अधिक ठंड होने के कारण उत्तराखंड के लगभग सभी मंदिरों के छः महीने कपाट बंद रहते हैं एवं छः महीने के लिए कपाट भक्तों को दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं।
लेकिन यदि आप ट्रैकिंग के शौकीन हैं, पहाड़ी क्षेत्रों में घूमना आपको पसंद है तो आप यहां अगस्त या सितंबर के महीने में आ सकते हैं। यहां की फूलों की अद्भुत आपका मन मोह लेंगी।
परंतु आप जब भी यहां आए तो अपने साथ एक स्थानीय गाइड जरूर लेकर आएं क्योंकि इस स्थान पर कोई भी साइन बोर्ड या चिन्ह नही मौजूद है। जिस वजह से पहाड़ी रास्तों में भटकने का डर लगा रहता है। इसलिए आप जब भी आए तो अपनी पूर्ण सुरक्षा के साथ आएं।
ये एक बहुत ही अद्भुत स्थान है। यहां आप भगवान के दर्शनों के साथ-साथ यहां की प्रकृति का भी पूर्ण आनंद ले सकते हैं। यहां के पहाड़ी लोग बहुत ही घुले मिले होते हैं। उनसे मिल कर और बात करके आपको बहुत अच्छा लगेगा।
वे इस स्थान के बारे में आपको बहुत ही विस्तार से बता सकते हैं। वहां के लोग आपको ठंडे-ठंडे मौसम में गरम-गरम चाय के साथ इस स्थान की कई रहस्यमयी बातें बता कर आपको आनंदित कर देंगे।
एकबार यहां की खूबसूरत वादियों में आने के बाद यहां से कहीं और जाने का दिल ही नही करता है। ये स्थान बहुत ही सुरम्य एवं दिव्य है। यहां के अतिउत्तम पेड़ पौधे और अनोखे सुंदर फूल आपको सर्वाधिक अपनी ओर आकर्षित करेंगे।
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