उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि नहीं कहा है, यहां के प्रत्येक पहाड़, नदियां, मंदिर, गुफाएं सभी ऐतिहासिक तथा रहस्यमयी है। उत्तराखंड की वादियों में दिल को एक अलग ही सुकून सा मिलता है। चारों तरफ हरियाली, बर्फ से ढके हुए पहाड़, शीतल झर झर करती हुई बहती नदियां, गंगा आरती की सुगंध सभी मन को प्रफुल्लित कर देते हैं।
उत्तराखंड राज्य एक ऐसा स्थान है जहां आपको ना केवल धार्मिक बल्कि घूमने योग्य अन्य पर्यटन स्थल भी मिलेंगे। प्रकृति के आंचल में बसा हुआ ये राज्य अद्भुत है। उत्तराखंड बहुत से देवी-देवताओं की जन्मस्थली तथा बहुत से ऋषि मुनियों की तपस्थली कही गई है।
आपको बता दें कि ध्यानी ज्ञानी लोग इसे ध्यान योग लगाने के लिए सबसे उत्तम स्थान मानते है। पूरे भारतवर्ष में यदि प्रकृति की सुंदरता कहीं देखने को मिलती है तो वो उत्तराखंड राज्य ही है। जी हां यहां के फूलों के बगीचे पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इतना ही नहीं यहां के अन्य भी कई ऐसे जगह हैं जिन्हें विश्व की धरोहरों में स्थान मिला है।
ये कई बड़ी नदियों जैसे गंगा, यमुना, सरस्वती का उद्गम स्थान है। उत्तराखंड का तो नाम सुनते ही मन वहां जाने को मचल जाता है। आखिर कौन ऐसा होगा जो बर्फ से ढकी हुई प्रकृति की उन हसीं वादियों में जाना नहीं चाहेगा।
क्या है चंद्रशिला? ( What Is Chandrashila Trek )

रुद्रप्रयाग में तुंगनाथ मंदिर से ऊपर चंद्रशिला की पहाड़ियों में एक चंद्रशिला नाम का मंदिर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास चंद्रदेव तथा भगवान श्रीराम से जुड़ा है। धार्मिक यात्रा के साथ-साथ रोमांचक यात्रा का अनुभव करने के लिए आप चंद्रशिला के ट्रैक पर अवश्य ही जाएं।
चंद्रशिला पीक का ट्रैक करने के लिए प्रत्येक वर्ष देश विदेश से हजारों लाखों की संख्या में टूरिस्ट यहां आते हैं। ये ट्रेक न केवल अपनी खूबसूरती बल्कि धार्मिक महत्वता के कारण भी प्रसिद्ध है। इस चंद्रशिला ट्रेक के ऊपर शिखर पर चंद्रशिला मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर का संबंध भगवान श्री राम व चंद्रमा से है ।
चंद्रशिला से चंद्रमा का संबंध
ये बात सतयुग के उस समय की है जब राजा प्रजापति दक्ष हुए थे। प्रजापति दक्ष की कई पुत्रियां हुईं जिनमें से एक थी देवी सती जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। तथा अपने पिता के द्वारा ही अपने पति का अपमान न सह सकने के कारण इन्होंने यज्ञ में आत्मदाह कर लिया जिसके पश्चात 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ।
प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं का विवाह चंद्र देव से हुआ। परंतु चंद्रमा को राजा दक्ष की बड़ी कन्या रोहिणी से अधिक स्नेह था। अन्य 26 कन्याओं को ये अच्छा नहीं लगता था कि उनके पति उनसे स्नेह नहीं करते तब उन्होंने ये बात जाकर अपने पिता प्रजापति दक्ष से कह दी।
फिर प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को बहुत समझाया किंतु जब वो नहीं समझा तो दक्ष ने उसे छय रोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया। इस रोग से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा कुछ समय तक चंद्रशिला की इस पहाड़ी पर भी भगवान शिव का ध्यान करते रहे। उसके बाद ही इस शिला का नाम चंद्रशिला पड़ा। चंद्रशिला को मूनरॉक भी कहते हैं।
आपको बता दें कि चंद्रशिला मंदिर की कहानी श्री राम जी से भी संबंधित है। श्री राम जी का जन्म राक्षसों का वध तथा पाप के अंत के लिए अयोध्या के राजा दशरथ के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम कौशल्या था। 14 वर्ष के लिए जब श्री राम वनवास को गए तब एक दिन लंकापति रावण ने छल से उनकी पत्नी देवी सीता का हरण कर लिया।
इसके बाद देवी सीता को उस राक्षस से सुरक्षित वापिस लाने के लिए श्री राम ने वानरराज सुग्रीव के साथ मिलकर लंका पर चढ़ाई कर दी तथा उन्होंने लंका के राजा रावण का वध किया किंतु रावण राक्षस तो था ही साथ ही साथ वो पुलस्त्य ऋषि का वंशज भी था अर्थात ब्राह्मण पुत्र था।
इसी कारण से रावण का वध करने के उपरांत श्रीराम जी पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। जिसके लिए श्री राम जी ने अनेकों प्रकार से पश्चाताप भी किया। उस पश्चाताप के फलस्वरुप श्री राम जी ने इसी चंद्रशिला पहाड़ी पर भी कुछ समय रहकर तपस्या की भगवान शिव का ध्यान किया तथा उनसे क्षमा याचना की थी ।
क्योंकि यहां पर श्री राम जी ने ध्यान लगाया था, इसी कारण चंद्रशिला पहाड़ी की महत्वता भक्तों के मध्य और अधिक बढ़ गई है।
चंद्रशिला पहाड़ी की स्थिति
चंद्रशिला पहाड़ी उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में चोपता गांव के पास स्थित है। चोपता गांव आने के पश्चात् यहां से ट्रेक करके 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तुंगनाथ मंदिर पहुंच जायेंगे।
ये मंदिर पंच केदारों में से एक केदार है। तुंगनाथ मंदिर से ऊपर लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर का रास्ता और ट्रेक करके चंद्रशिला पहाड़ी के शिखर तक पहुंचा जा सकता है।
आपके सामान्य ज्ञान के लिए बता दें कि चंद्रशिला शिखर की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 4000 मीटर है। ये शिला जिस पर्वत पर स्थित है, उस पर्वत को तुंगनाथ की पहाड़ियां कहा जाता है। या हम ये कह सकते हैं कि चंद्रशिला शिखर तुंगनाथ पहाड़ियों की उच्चतम बिंदु है।
जिस स्थान से हिमालय की चोटियों के अद्भुत दर्शन होते हैं। इनमें हिमालय की नंदा देवी, त्रिशूल केदार, चौखंभा, बंदरपूंछ चोटियां आती हैं। जिनके सुंदर सुंदर दृश्य हमे चंद्रशिला पहाड़ी के शिखर से होते हैं।
इस बात पर विशेष ध्यान दें की चंद्रशिला मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको चंद्रशिला पहाड़ी का ट्रेक जितना सुंदर, लुभावना व रोमांचक लगेगा उतना ही कठिन भी। क्योंकि तुंगनाथ मंदिर के बाद इसकी चढ़ाई लगभग बिल्कुल सीधी है।
जिसे चढ़ना आम आदमी के लिए इतना आसान नहीं है। यहां पर जाने के लिए ट्रैकिंग कंपनियां देवरिया चंद्रशिला ट्रेक के रास्ते का इस्तेमाल भी करती है। कहने का अर्थ ये है कि चंद्रशिला के शिखर तक पहुंचने के लिए एक नहीं बल्कि दो रास्ते हैं।
इनमें पहला रास्ता छोटा, सस्ता लेकिन बहुत ही कठिन है। जो ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग फिर उखीमठ फिर चोपता होते हुए तुंगनाथ फिर चंद्रशिला तक पहुंचता है। वहीं दूसरा रास्ता पहले रास्ते की अपेक्षा बड़ा, जंगलों से घिरा हुआ किंतु थोड़ा सुगम है।
जोकि ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग होते हुए उखीमठ फिर सरी गांव, देवरियाताल, रोहिणी बुग्याल, स्यालमी, बनियाकुंड तथा फिर तुंगनाथ और फिर चंद्रशिला तक पहुंचता है।
चंद्रशिला के नाम का अर्थ है चंद्र की शिला जो सुनकर ही कितना अच्छा लगता है तो ये देखने में कितना सुंदर होगा। पहाड़ों, नदियों, झरनों इनका तो नाम सुनकर ही मन हर्षित हो जाता है। आप जब भी उत्तराखंड जाए तो चंद्रशिला की पहाड़ियों पर अवश्य ही जाएं जो कि तुंगनाथ मंदिर से पास ही स्थित हैं।
तुंगनाथ मंदिर में महादेव जी के दर्शन करते हुए इसके बाद चंद्रशिला मंदिर के दर्शन कितना मनमोहक होगा। जिसके शिखर से हिमालय की चोटियां बिल्कुल स्पष्ट एवं सुंदर दिखाई देते हैं । यदि आप कहीं लंबे टूर पर जाना चाहते हैं तो उत्तराखंड से बेहतर स्थान और कोई हो ही नहीं सकता है।
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