जानिए क्या है उत्तराखंड में स्थित अलकनंदा नदी तंत्र | Alaknanda Nadi Tantra

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उत्तराखंड में बहने वाली नदियां हिमालय के ग्लेशियर में से होकर निकलती हैं। इसीलिए ये नदियां सदानीरा होती हैं। उत्तराखंड में बहने वाली सभी नदियों में सबसे प्रसिद्ध नदी अलकनंदा नदी है। अलकनंदा नदी भारतवर्ष के देवभूमि उत्तराखंड  में बहने वाली एक हिमालयी नदी है।

गंगा नदी के दो नदी शीर्ष हैं जिनमें से एक अलकनंदा नदी हैं तथा दूसरी भागीरथी नदी हैं। इस नदी का हिंदू धर्म में एक पवित्र स्थान है। वैज्ञानिकों की दृष्टि से अलकनंदा नदी, गंगा नदी को, भागीरथी नदी से अधिक जल प्रदान करती है। अलकनंदा, गंगा के चार नामों में से एक है।

चारों धामों में गंगा के अलग-अलग अनेक रूप तथा नाम है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से पहचानते हैं, केदारनाथ में गंगा को मंदाकिनी तथा बद्रीनाथ में गंगा नदी को अलकनंदा कहते हैं। ये नदी उत्तराखंड में सतोपंथ तथा भगीरथ खरक नामक हिमनदों से निकलती है। इस स्थान को ही गंगोत्री कहते हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अलकनंदा नदी घाटियों में लगभग 195 किलोमीटर तक बहती है तथा फिर देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम होता है। इसके पश्चात अलकनंदा नाम समाप्त होकर केवल गंगा नाम ही रह जाता है।

आपको बता दें कि अलकनंदा नदी चमोली रुद्रप्रयाग टिहरी तथा पौड़ी जिलों से होकर के गुजरती है। इस नदी का योगदान गंगा नदी के पानी में भागीरथी से अधिक होता है। श्री बद्री विशाल का मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ है। ये नदी साहसिक नौका खेलों जैसे राफ्टिंग इत्यादि के लिए बहुत लोकप्रिय है।

केशवप्रयाग स्थान पर ये नदी आधुनिक सरस्वती नदी से मिलती है। केशवप्रयाग बद्रीनाथ मंदिर से कुछ ही ऊंचाई पर अवस्थित है। 

सहायक नदियां

अलकनंदा नदी की 5 सहायक नदियां हैं, जोकि गढ़वाल क्षेत्र में पांच अलग-अलग स्थानों पर इस नदी से मिलकर के पंच प्रयाग ( विष्णु प्रयाग, नंद प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग, तथा देव प्रयाग ) का निर्माण करती हैं। 

अलकनंदा की सहायक नदियां

▪️सरस्वती नदी

▪️ऋषि गंगा

▪️लक्ष्मण गंगा

▪️धौलीगंगा

▪️नंदाकिनी

▪️पिंडर नदी या कर्णगंगा

▪️मंदाकिनी

▪️भागीरथी

अलकनंदा नदी तंत्र

Alaknanda River Tantra Source: unacademy

अलकनंदा नदी सतोपंथ ग्लेशियर से होकर निकलती हैं। सतोपंथ ग्लेशियर तथा भगीरथ ग्लेशियर दोनो मिलकर के अलकापुरी बॉक ग्लेशियर का निर्माण करते हैं तथा इसी स्थान से अलकनंदा नदी अपने वास्तविक स्वरूप में आती हैं। सतोपंथ ग्लेशियर के नजदीक ही सतोपंथ ताल जो कि त्रिकोण के आकार का है।

उसके बाद अलकनंदा नदी में वसुंधरा प्रपात एवं ऋषि गंगा नदी मिलती हैं। इसके पश्चात केशव प्रयाग में अलकनंदा नदी तथा सरस्वती नदी का संगम होता है। भीम पुल सरस्वती नदी पर स्थित है। इसके पश्चात अलकनंदा नदी बद्रीनाथ की तलहटी में होकर बहती है। तथा बद्रीनाथ मंदिर इस नदी के बाएं तट पर स्थित है। 

फिर इसके बाद अलकनंदा नदी हनुमान चट्टी पहुंचती हैं। जहां पर एक मंदिर (जोशीमठ- नरसिंह मंदिर एक हाथ पतला भविष्य बद्री) है। विंदघाट में पुष्पावती नदी अलकनंदा नदी से मिलती है। लक्ष्मण गंगा अथवा हिमगंगा, पुष्पावती की एक सहायक नदी है।अब अलकनंदा नदी अपने पहले प्रयाग की ओर बढ़ती है, जोकि विष्णुप्रयाग है।

विष्णुप्रयाग तक अलकनंदा नदी को विष्णु गंगा के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान पर अलकनंदा का संगम कनकलुख श्रेणी से निकलने वाली पश्चिमी धौलीगंगा से होता है। पंच प्रयाग में से विष्णुप्रयाग एकमात्र ऐसा प्रयाग है जहां पर कोई भी शहर नहीं बसा हुआ है। इस स्थान पर जय-विजय नाम के दो पर्वत स्थित हैं। 

विष्णुप्रयाग के पश्चात अलकनंदा नदी से, तुंगनाथ श्रेणी से निकलने वाली बालिख्या नदी मिलती है। पंच केदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। इसके बाद अलकनंदा नदी में छोटी-छोटी नदियां जैसे कि पातालगंगा, गरुड़गंगा, एवं विरही गंगा मिलती है।

अब अलकनंदा नदी दूसरे प्रयाग, नंदप्रयाग में नंदाघुघुटी से निकलने वाली नंदाकिनी नदी से मिलती है। ऐसा माना जाता है कि ये स्थान नन्दो की राजधानी थी। अब नंदप्रयाग के बाद अलकनंदा नदी तीसरे प्रयाग जो कि कर्णप्रयाग है, कि और बढ़ती है। इस स्थान पर पिंडर नदी से मिलती हैं। आटागाड़ नदी,पिंडर नदी की सहायक नदी है।

कर्णप्रयाग में ऐसी मान्यता है कि कर्ण को भगवान सूर्य से इस स्थान पर ही कवच तथा कुंडल प्राप्त हुए थे। यहां पर कर्ण मंदिर, कृष्ण कर्ण मंदिर, एवं उमा देवी मंदिर स्थित है। विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, तथा कर्णप्रयाग ये तीनों प्रयाग उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित हैं।

इसके पश्चात अलकनंदा नदी चौथे प्रयाग, रुद्रप्रयाग की ओर बढ़ती हैं। इस स्थान पर अलकनंदा का संगम चौराबाड़ी ताल से निकलने वाली मंदाकिनी नदी से होता है। मंदाकिनी नदी सोनप्रयाग में सोंग गंगा अथवा वासुकी नदी से मिलती है। कालीमठ में इसका संगम दूधगंगा या मधुगंगा से होता है। रुद्रप्रयाग में अनेकों रूद्र मंदिर स्थित है। इसलिए प्राचीन ग्रंथों में इस क्षेत्र को रूद्र क्षेत्र कहा जाता था। रुद्रप्रयाग में नारद जी ने भगवान रुद्र की तपस्या की थी। 

यहीं पर नारद जी को संगीत शास्त्र का ज्ञान हुआ था। रुद्रप्रयाग के बाद अलकनंदा नदी श्रीनगर को होते हुए पांचवें प्रयाग, देवप्रयाग की ओर आगे बढ़ती हैं। देवप्रयाग में इसका संगम भागीरथी नदी से होता है। भिलंगना नदी भागीरथी नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। ये भी मान्यता है कि देवप्रयाग को देव शर्मा नामक एक ऋषि ने बसाया था।

इसे सुदर्शन प्रयाग के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थान पर महर्षि दधीचि ने देवराज इंद्र को अपनी अस्थियां दी थी। इसीलिए इसे इंद्रप्रयाग भी कहते हैं। इस स्थान पर दो कुंड भी स्थित हैं। जिनमें भागीरथी नदी की ओर से ब्रह्मकुंड तथा अलकनंदा नदी की ओर से वशिष्ठकुंड है।

अलकनंदा नदी को बहू एवं भागीरथी नदी को सास कहा जाता है। इसके पश्चात अपने उद्गम स्थल से 195 किलोमीटर तक बहने के बाद अलकनंदा नदी देवप्रयाग से गंगा के नाम से जानी जाने लगती हैं। इसके बाद फूलचट्टी नामक स्थान पर गंगा नदी से नयार नदी मिलती है।

आपको ये भी बता दें कि ऋषिकेश से चंद्रभागा और रायवाला में सौंग नदी से मिलते हुए गंगा नदी हरिद्वार में उत्तराखंड से बाहर चली जाती हैं। देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा की कुल लंबाई लगभग 96 किलोमीटर है। अलकनंदा नदी उत्तराखंड की सबसे अधिक जलप्रवाह वाली नदी है। ये नदी आकार की घाटी बनाती है और सर्वाधिक सकरी घाटियों से होकर के बहती है।

जानिए कहां से निकलती है गंगा नदी, साथ ही कौन हैं गंगा की सहायक नदियां

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