उत्तराखंड की भागीरथी नदी पर निर्मित टिहरी बांध भारत में सबसे ऊंचा और विश्व में आठवां सबसे ऊंचा बांध है। जानकारी के मुताबिक इस बांध की ऊंचाई करीब 261 मीटर और लंबाई 575 मीटर है।
साथ ही ये बांध 52 वर्ग किलोमीटर के सतह क्षेत्र पर है जो 2.6 क्यूबिक किलोमीटर के लिए एक तरह का जलाशय है। इसके अलावा बांध करीब 1000 मेगावाट बिजली पैदा करता है जिसे सिंचाई और दैनिक खपत के रूप में काम में लाया जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि टिहरी बांध विश्व की एक ऐसी सबसे महत्वपूर्ण जल विद्युत परियोजना है जिसे भागीरथी और भिलंगना नदियों से पानी प्राप्त होता है जो कि हिमालय से निकलती हैं।
विभिन्न परियोजनाओं के अलावा टिहरी बांध एक पर्यटक स्थल के रूप में भी जाना जाता है। यहां हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक घूमने फिरने के लिए आते हैं।
आपको बता दें कि खूबसूरत हरी पहाड़ियों के बीच यह टिहरी झील कई लोगों के लिए एक अद्भुत प्राकृतिक परिदृश्य बन चुकी है। यही नहीं दूर-दूर से लोग इस बांध के अनूठी सौंदर्य और संरचना का अनुभव करने यहां पहुंचते हैं।


टिहरी बांध के लाभ
- टिहरी बांध करीब 1000 मेगावॉट की पनबिजली का उत्पादन करता है जो कि सिंचाई और दैनिक खपत के काम आती हैं।
केवल पास के गांव तक सेवा पहुंचाने के अलावा ये बांध गढ़वाल में एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल भी बना हुआ है। यहां बड़ी तादाद में पर्यटक देखे जा सकते हैं। - ये स्थान पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण प्राकृतिक सुंदरता से लैस है। जिसके कारण यात्री यहां घूमने फिरने के लिए आना बेहद पसंद करते हैं। यही नहीं यहां जेट स्कीइंग, वाटर जॉर्बिंग और राफ्टिंग जैसी कई रोमांचक गतिविधियां भी होती है।
- आपको बता दें कि प्राकृतिक सुंदरता के अलावा टिहरी बांध अपने पर्यटकों को टेहरी झील पर कुछ रोमांचक अनुभव बटोरने का अवसर भी प्रदान करता है। जाहिर है कि बढ़ते पर्यटन से राज्य की आर्थिक रीढ़ भी मजबूत होती है जो आगे विकास के रूप में लोगों तक पहुंचती है।
- इस बांध से उत्पादित बिजली उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, चंडीगढ़, उत्तराखंड, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को वितरित की जाती है।


एक तरह से देखा जाए तो आकर्षण का केंद्र बना हुआ ये बांध उत्तराखंड की ऐतिहासिक धरोहर है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि टिहरी बांध अपने भीतर एक विशाल इतिहास को संजोए हुए हैं। तो आइए जानते हैं टिहरी बांध का इतिहास:
- टिहरी बांध परियोजना को लेकर एक प्रारंभिक जांच 1961 में समाप्त हुई। इसके बाद इस बांध का डिजाइन 1972 में 600 मेगावाट क्षमता के बिजली संयंत्र के अध्ययन पर आधारित था।
- इसके बाद 1978 में जब व्यवहार्यता अध्ययन किया गया तो उसके पश्चात इसका निर्माण शुरू हुआ। परंतु वित्तीय सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव की वजह से निर्माण में और विलंब हुआ।
- फिर 1986 में यूएसएसआर ने तकनीकी और वित्तीय मदद तिथि लेकिन उसके बाद भी निर्माण कार्य राजनीतिक अस्थिरता की वजह से बाधित होता रहा। आपको बता दें इस परियोजना हेतु कुल व्यय 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर किया गया था।
- फिर 1986 में यूएसएसआर ने तकनीकी और वित्तीय मदद तिथि लेकिन उसके बाद भी निर्माण कार्य राजनीतिक अस्थिरता की वजह से बाधित होता रहा। आपको बता दें इस परियोजना हेतु कुल व्यय 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर किया गया था।
- इसके बाद भी टिहरी बांध के निर्माण में कई बाधाएं आई। 1961 से लेकर 1986 तक कोई ना कोई बाधा इस बांध के निर्माण कार्य को रोकने में सफल रही।
- टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन निर्माण परियोजना के प्रबंधन के लिए अस्तित्व में आया। अगर इसके अलावा देखा जाए तो 75% निष्कर्ष संघीय सरकार और 25% राज्य से आया। तो अब उत्तर प्रदेश को बांध की पूरी सिंचाई परियोजना के वित्तपोषण की जिम्मेदारी निभानी थी।
- इसके पश्चात जब 1990 में एक बार फिर टिहरी बांध के डिजाइन पर पुनः विचार किया गया तभी यह बांध सबसे ऊंचे बांधों में से एक बना।
- आपको बता दें कि पहला चरण पूरा होने के पश्चात 2004 में टिहरी का एक बड़ा क्षेत्र जलमग्न हो गया था। जाहिर है कि निर्माण के वक्त बहुत सी चीजें खराब हो गई थी। लेकिन आज टिहरी बांध कई राज्यों की पानी की आपूर्ति के लिए मजबूती के साथ खड़ा है।
- फिर अंततः वर्ष 2006 में इस बांध का निर्माण पूरा होने को चिन्हित किया गया। वही इसके साथ ही 2012 में इस पर चल रही परियोजना का दूसरा हिस्सा भी पूर्ण हो गया।
टिहरी बांध के खिलाफ़ आंदोलन
गौरतलब है कि टिहरी डैम देश का सबसे ऊंचा डैम है और लोगों के लिए ये आकर्षण का केंद्र है। वहीं आपको बता दें कि जितना ये बांध अपनी खूबसूरती के लिए चर्चा में रहा उतना ही आसपास रहने वाले लोगों के लिए विरोध का विषय रहा है।
बांध के निर्माण के वक्त इसका जमकर विरोध किया गया। असल में कई ऐसे वैज्ञानिक है जिन्होंने इस बांध के निर्माण पर आपत्ति जताई।

उनका कहना है कि टिहरी बांध का निर्माण करीब 10,000 लोगों को बेघर कर सकता है। यही नहीं आपत्ति के पीछे एक और कारण हिमालय सीस्मिक गैप फेस की निकटता थी।
इसके पीछे कारण ये है कि अगर कभी भूकंप आया तो उससे 5,00,000 से अधिक लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। जाहिर है ये आंकड़ा किसी को भी हैरान कर सकता है।
इसके बाद 1990 में टिहरी बंधु विरोधी संघर्ष समिति द्वारा इस बांध के निर्माण पर रोक लगाने हेतु एक आधिकारिक याचिका दायर की गई। उसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में भेजा गया।
आपको बता दें कि ये मामला अदालत में लगभग 10 साल तक चला। वहींं सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के निर्माण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
यही नहीं 1995 में उन्होंने भूख हड़ताल भी की। उनके अलावा भी ऐसे कई स्थानीय लोग हैं जिन्होंने विरोध और हड़ताल की है। इस दौरान उन्हें सरकार के बल प्रदर्शन और कार्यवाही से भी जूझना पड़ा है।
कई बाधाओं और पर प्रदर्शनों के पश्चात भी टिहरी बांध का निर्माण हुआ और आज सैलानियों के लिए ये एक आकर्षक पर्यटन स्थल बना हुआ है।
जाहिर है कि इस बांध का इतिहास काफी चुनौतियों से भरा रहा है जिसके बाद आज हम इस अद्भुत संरचना का आनंद उठा पा रहे हैं। निश्चित ही टिहरी डैम और टिहरी झील दोनों ही एक रोमांचक स्थल है जहां हर व्यक्ति जीवन में एक बार जरूर जाना चाहेगा।
Featured image source: thegarhwaldiary