देवभूमि उत्तराखंड के गंगोलीहाट में स्थित महाकाली मंदिर समस्त कुमाऊं (कूर्मांचल) में हाट कालिका मंदिर के नाम से विख्यात है। गंगोलीहट में स्थित, हाट कालिका मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। हाट कालिका मंदिर के विषय में पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। 5 हजार वर्ष पूर्व रचित स्कंद पुराण के मानसखंड में, गंगोलीहाट स्थित हाट कालिका देवी का विस्तृत वर्णन है।
आदि गुरु शंकराचार्य महाराज ने कुमाऊं यात्रा के समय हाट कालिका की पुनर्स्थापना की थी। आदि गुरु शंकराचार्य भगवन शंकर के अवतार माने जाते हैं। गंगोलीहाट स्थित हाट कालिका मां काली के शक्ति पीठों के लिए जाना जाता है। देवदार के घने वृक्षों के बीच स्थित ये मंदिर माता काली का भव्य मंदिर है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु-भक्त दर्शन के लिए आते है।
हाट कालिका मंदिर का इतिहास

लोगों का मानना है कि देवी का महिषासुर नामक राक्षस से युद्ध इसी स्थान पर हुआ था। प्राचीन काल से इस मंदिर परिसर में एक पवित्र अग्नि सतत रूप से जल रही है। माना जाता है कि देवी काली ने पश्चिम बंगाल से इस स्थान को अपने आवास में परिवर्तित कर दिया था। महाकाली मन्दिर की जड़ में पाताल गंगा बहती हैं, ऐसा कहा जाता है।
एक पहाड़ पर से होकर गुफा के भीतर मशाल लेकर जाना पड़ता है। यहां वायु अत्यंत तीव्र चलती है तथा नदी का वेग भी बहुत तेज़ होता है। नदी के जल में अगर मिट्टी छोड़ी जाये तो वह करीब 3 किमी की दूरी पर बाहर आकर प्रकट होती जाती है।
यहां दी जाती है बलि
प्राचीन काल से ही यह मान्यता है की माता काली को बलि अत्यंत प्रिय है। यहां महाकाली देवी को प्रसन्न करने के लिए अनेकों भक्त बकरों और मेमनों की बलि देते हैं। ताकि उनको मनवांछित फल प्राप्त हो अर्थात उनकी मनोकामनाएँ पूरी हो जाये।
लगता है हाट कालिका मेला
यहां पर प्रसिद्ध हाट कालिका मेला लगता है। मेले के समय यह जगह रंगों से शोभायमान हो जाती है और ढोल-बाजों की ध्वनि से आस-पास का वातावरण उमंग से भर जाता है। चैत्र व आश्विन की नव-रात्रियों में विशेषतः अष्टमी के दिनों में यहाँ बहुत ही सुन्दर मेले का योजना होता है। यहाँ प्रत्येक अष्टमी को बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं।
महाकाली के इस हाट कालिका मंदिर में समय-समय पर सहस्त्र चण्डी यज्ञ, सहस्र घट पूजा, शतचंडी महायज्ञ, अष्टबलि अठवार आदि का आयोजन होता रहता है।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
पिथौरागढ़ जिले में स्थित इस मंदिर में अनेक चमत्कार होते रहते हैं।
स्थानीय लोगों का यह मानना है कि जो भी भक्त महाकाली के चरणों में श्रद्धापुष्प अर्पित करता है वह बीमारियों, उदासी और दरिद्रता आदि से मुक्त हो जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हाट कलिका माँ का रात्रि में डोला चलता है, जिसमें अक्सर देवी काली अपने गणों के मध्य मन्दिर में ढोल-नगाड़ों के साथ दिखाई देतीं है।
यदि कोई इस डोले को स्पर्श कर ले तो उसे दिव्य वरदान की प्राप्ति होती है। लोगों का मानना ये भी है कि मंदिर परिसर में देर रात्रि में पवित्र आत्माएँ भ्रमण करती हैं। कलकत्ते के काली मन्दिर की भांति ही यहाँ मान्यता है कि कभी-कभी रात्रि के समय देवी कीर्ति-बागीश्वर महादेव को पुकारतीं थी।
लोगों का ये मानना है कि जो भी उस पुकार सुन लेता था उसकी उसी क्षण मृत्यु हो जाती थी। इस कारण उस क्षेत्र के लोगों ने पलायन करना आरम्भ कर दिया। तब आदि गुरु शंकराचार्य ने आकर उस स्थान को पत्थर से ढक दिया। तब से देवी के पुकारने की आवाज आना बन्द हो गयी। उसके बाद वहां लोगों का आगमन फिर से होने लगा।
हाट कालिका मंदिर के विषय में कहा जाता है कि यहाँ पर माँ काली शयन-विश्राम करतीं है। यहाँ शक्तिपीठ के निकट ही महाकाली का बिस्तर लगाया जाता है। देखा गया है कि प्रातःकाल यह बिस्तर सिकुड़ा हुआ मिलता है, जिससे प्रतीत होता कि यहाँ पर किसी ने विश्राम किया था।
आर्मी के जवान भी टेकते हैं माथा
महाकाली इंडियन आर्मी, कमाऊं रेजिमेंट की आरध्य देवी हैं। कुमाऊं रेजिमेंट के जवान युद्ध आदि मिशनों में जाने से पूर्व महाकाली के दर्शन करते हैं। आपको बता दें कि 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग के पश्चात सूबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में कुमाऊं रेजीमेंट ने यहाँ महाकाली की मूर्ति की स्थापना की थी। ये सेना द्वारा यहाँ स्थापित प्रथम मूर्ति है।
इसके पश्चात 1994 में कुमाऊं रेजिमेंट ने बड़ी मूर्ति स्थापित की थी। यहां समय- समय पर माता की आराधना के लिए सेना के अफसरों का तांता लगा रहता है।
कैसे पहुंचे हाट कालिका मंदिर
अगर आप हाट कालिका मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये मंदिर अल्मोड़ा से पनार होते हुए 124 किलोमीटर तथा सेराघाट होते हुए 110 किलोमीटर पर है। ये पिथौरागढ़ से लगभग 77 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गंगोलीहाट बस अड्डे से करीब 1 किलोमीटर उतार पर देवदार वनों के मध्य बहुत ही मनमोहक और शांतिपूर्ण वातावरण में माँ काली का यह अनुपम मन्दिर स्थित है।
इसी के साथ आपको एक बार ही सही इस हाट कालिका मंदिर में मां काली के दर्शन ज़रूर करने चाहिए। ये एक ऐसा ऐतिहासिक स्थल है जहान पहुंचकर आपको ये एहसास होगा कि आख़िर क्यों इस जगह को यहां की धरोहर भी कहा जाता है।
आशा करते है आपको यह ज्ञानवर्धक जानकारी अवश्य पसंद आई होगी। ऐसी ही अन्य धार्मिक और उत्तराखंड संस्कृति से जुड़ी पौराणिक कथाएं पढ़ने के लिए हमें फॉलो करना ना भूलें।
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