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देश-विदेशों में उत्तराखंड की बिच्छू घास की भारी मांग, जानिए इसके फायदे |Nettle Plant

उत्तराखंड की बिच्छू घास पूरी दुनिया के अधिकतर देशों में पाए जाने वाली एक वनस्पति है। भारत में ये घास पहाड़ी इलाकों में अधिकतर पाई जाती है। उत्तराखंड में इसे सिंसूण (कुमाऊं क्षेत्र) और कंडाली (गढ़वाल क्षेत्र) कहा जाता है।

नेपाल और उसके आसपास के क्षेत्रों में इसे सिस्नो कहा जाता है। आमतौर पर उत्तराखण्ड में ज्यादातर इसे बिच्छू घास भी के नाम से भी जाना जाता है। इस घास का स्वभाव ऐसा है कि ये जगह जगह स्वयं ही उग जाती है। 

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली ये एक ऐसी घास है जिसे वहां के लोग भी छूने से डरते हैं। वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो स्वाद को लेकर और दवा तथा आय का भी ये एक बहुत बड़ा स्रोत है। ये खास अपने में बहुत सारे गुणों को समेटे हुए है।

इससे बना साग खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगता है। वहीं दूसरी ओर इस खास से बनी चप्पल, कंबल, जैकेट, आदि से लोग अपनी आय में भी वृद्धि कर रहे हैं। और तो ये घास  औषधीय गुणों से भी भरपूर है।

बिच्छू घास के पत्ते एवं डंडियों में पतले पतले एवं छोटे-छोटे कांटे होते हैं। जो कि इसे छूने पर जोर से चुभ जाते हैं। चुभन से हमें थोड़ी झनझनाहट सी महसूस होती है और उसके साथ लाल रंग के दाने भी निकल आते हैं।

ये चुभन और झनझनाहट इन कांटों पर पाए जाने वाले फार्मिक एसिड जैसे तत्वों की वजह से होता है। बिच्छू घास को पानी में उबालने के पश्चात ये सभी प्रकार के तत्व नष्ट हो जाते हैं।

परंतु हमारे शरीर के जिस स्थान पर बिच्छू घास लग जाती है, उस स्थान पर पानी लग जाए तो झनझनाहट और तेजी से बढ़ जाती है। लेकिन तेल लगाने से या कंबल रगड़ने से उस स्थान से झनझनाहट दूर हो जाती है।

कंडाली से बना साग

पहाड़ी इलाकों में बिच्छू घास की सब्जी बहुत अधिक लोकप्रिय है। पालक के साग की तरह ये बिच्छू घास की सब्जी भी बनाई जाती है। इसका स्वाद भी पालक के साग की तरह ही होता है।

इसकी तासीर थोड़ी गर्म होती है इसलिए पहाड़ों में इसे व्यंजन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पहाड़ के व्यंजन वैसे भी स्वाद में भरपूर और बहुत पौष्टिक होते हैं। इसी को देखते हुए पहाड़ी खाने की मैदानी क्षेत्र में भी बहुत अधिक मांग बढ़ गई है।

इसमें से ही एक कंडारी का साग भी है। बिच्छू घास की सब्जी में आयरन उपयुक्त मात्रा में पाया जाता है। आयरन के साथ-साथ मैग्नीज, कैल्शियम, विटामिन ए, विटामिन बी, आदि  अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।

वर्तमान समय में धीरे-धीरे बिच्छू घास की चाय भी पहाड़ों में बनाई जाने लगी है। पहाड़ों में दूध देने वाले पशुओं को भी बिच्छू घास ही खिलाई जाती है, जिससे पशु अधिक मात्रा में दूध देते हैं।

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औषधीय गुणों की खान है ये घास

Nettle Plant for medicine

व्यंजन के साथ-साथ इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में भी किया जाता है। औषधि के रूप में बिच्छू घास के फायदे उच्च रक्तदाब को कम करने में, किसी भी प्रकार के दर्द जैसे मांस पेशियों का दर्द, पेट दर्द, मासिक धर्म के दौरान होने वाला करो।

दर्द, कमर दर्द, आदि स्थानों में होने वाले को इस घास में पाए जाने वाले तत्व कम करते हैं। यहां पहाड़ों में अक्सर ऐसा देखा गया है की, लोग मोच आ जाने आने पर शरीर के उस स्थान पर बिच्छू घास लगाते हैं।

इस घास में पाए जाने वाले तत्व पित्त संबंधी समस्याओं को दूर करने में बहुत ही उपयोगी होते हैं। गठिया में भी इस घास का तेल लगाना बहुत फायदेमंद होता है।

इसके अलावा ये घास बालों के लिए और  मुहांसों के लिए भी बहुत अधिक फायदेमंद मानी जाती है। इस घास को प्राकृतिक मल्टीविटामिन का नाम भी दिया गया है।

बिच्छू घास की एक उपयोगिता ये है कि पहाड़ी क्षेत्रों में ये बच्चों को दंड के रूप में लगाई जाती थी। यहां अगर आप अधिकतर लोगों से पूछेंगे तो वे इस बात को जरूर बताएंगे कि बचपन में उन्होंने कभी ना कभी दंड के रूप में सिसूंण या कंडाली उन्हें जरूर लगाई गई होगी।

उत्तराखंड में जिस समय पहाड़ी क्षेत्र में महिलाओं ने शराब के खिलाफ मोर्चा उठाया था। तो सभी शराबियों को सबक सिखाने के लिए महिला वर्ग ने बिच्छू घास का ही इस्तेमाल किया था।

किसी किसी स्थान पर तो गीली बिच्छू घास (घास को भिगोकर) का कभी प्रयोग किया गया है। क्योंकि गीली बिच्छू घास का असर अधिक होता है।

क्यों कहते हैं बिच्छू घास

इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्विफ्लोरा है जोकि अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार की है। इस खास पर छोटे छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं। पत्तियों के शरीर के किसी भी अंग पर लगने में झनझनाहट शुरू हो जाती है।

इसका असर बिल्कुल बिच्छू के डंक के समान होता है। इसीलिए इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है। बिच्छू घास का इस्तेमाल बहुत सी चीजों के निर्माण में किया जाता है।

इससे चप्पल, स्टॉल, शॉल, कंबल, जैकेट आदि वस्तुओं का निर्माण अब किया जाने लगा है। इस घास से बने उत्पाद बाजार के राज्यों में बहुत पसंद किया जा रहा है।

उत्तराखंड में बना कर तैयार की जा रही है, कंडाली की स्लीपर जो कि दुनिया में छाई हुई है। फ्रांस से 10 हजार पेयर भीमल स्लिपर्स की डिमांड उत्तराखंड को मिली है। 4 हजार स्लीपर फ्रांस को एक्सपोर्ट भी कर दी गई है।

जबकि बाकी तैयार की जा रही है। उत्तराखंड में रिंगाल जूट कंडाली और कॉपर से तैयार प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ने लगी है। क्योंकि ऑनलाइन सेल के लिए भी उद्योग विभाग  तैयारी कर रहा है।

उत्तराखंड की कॉटेज इंडस्ट्री के लिए उत्साहित करने वाली खबर राज्य में छोटे-छोटे समूहों द्वारा भीमल, रिंगाल, कंडाली जैसे पौधों से तैयार किए जा रहे इन उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री के लिए उद्योग विभाग कई कंपनियों से बात भी कर रहा है।

हाल ही में अमेजॉन से विभाग में 20 उत्पादों की बिक्री के लिए तैयार किया गया है।ये बिच्छू खास हिमालयन नेटल के नाम से भी जानी जाती है। ये उत्तराखंड में जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कार्फ, और बैग भी तैयार किए जा रहे हैं।

चमोली व उत्तरकाशी जिले में कई समूह बिच्छू घास के तने से रेशा निकालकर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं। अमेरिका, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, रूस, आदि देशों को निर्यात के लिए नमूने भेजे जा रहे हैं।

इसके साथ ही जयपुर, अहमदाबाद, कोलकाता आदि राज्यों से इस की भारी मांग आ रही है। कुछ संस्थाओं ने बिच्छू घास के रेशे से हाफ जैकेट, शॉल, बैग, स्टॉल आदि बनाए हैं।

पहाड़ में पाई जाने वाली ये बिच्छू घास जो शरीर पर लगने से तुरंत खुजली शुरू हो जाती है। लेकिन अब लोग इस घास से बनी चाय की मीठी चुस्की की भी ले रहे हैं।

कुंडाली की चाय को यूरोप के देशों में विटामिन और खनिजों का एक पावर हाउस माना जाता है। जोकि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। बिच्छू घास से बनी चाय को भारत सरकार के एनपीओपी ने प्रमाणित किया है।

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