Bansi Narayan Temple- साल में एक बार ही खुलते है बंसी नारायण मंदिर के पट, जानिए क्या है मान्यता

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Bansi Narayan Temple

बंसी नारायण मंदिर जो कि एक ऐसा मंदिर है जिसके कपाट केवल एक दिन के लिए ही खुलते हैं, उत्तराखंड में सुंदर बुग्याल वाले उर्गम घाटी में ये स्थित है। वंशी नारायण मंदिर के नाम से विख्यात भगवान विष्णु का ये मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में स्थित है।

श्री वंशी नारायण मंदिर चमोली जिले के उर्गम घाटी में 13 हज़ार फीट की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के बुग्याल क्षेत्र में स्थित है। मंदिर की मान्यता है कि 364 दिन देवर्षि नारद यहां भगवान नारायण की पूजन अर्चन करते हैं, तथा शेष एक दिन यहां मनुष्यों को पूजा के लिए होता है।

पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से इस मंदिर के कपाट केवल रक्षाबंधन वाले दिन भी खुलते हैं। रक्षाबंधन का त्यौहार यहां बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। रक्षाबंधन वाले दिन बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। हिंदू धर्म की रीति रिवाजों के अनुसार केवल भाई बहन ही एक दूसरे को नहीं बल्कि वाहनों मंदिरों और भगवान को भी राखी बांधी जाती है।

इस दिन पुजारी जन कई मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना करते हैं। चमोली जिले के बद्रीनाथ क्षेत्र की बरगम घाटी में स्थित भगवान नारायण का ये मंदिर जो कि केवल रक्षाबंधन वाले दिन ही खुलता है। श्री वंशी नारायण मंदिर तक पहुंचने के लिए कम से कम 7 से 12 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना होता है।

जिस दिन इस मंदिर का कपाट खुलता है अर्थात रक्षाबंधन वाले दिन यहां अधिकतर महिलाओं की भीड़ रहती है, क्योंकि महिलाएं यहां भगवान नारायण को राखी बांधने के लिए जाती हैं।

चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर से उर्गम घाटी तक किसी वाहन से पहुंचने के बाद आगे चलकर 12 किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। यहां लगभग 5 किलोमीटर तक घास की मखमली चादर सी फैली हुई है। बुग्याल को पार करने के पश्चात सामने ही, प्रसिद्ध पहाड़ी शैली कत्यूरी में बना ये श्री बंसी नारायण मंदिर स्थित है।

लगभग दस फीट ऊंचे इस पौराणिक मंदिर में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। यहां की परंपरा के अनुसार यहां के मंदिर के पुजारी राजपूत हैं।

श्री बंसी नारायण मंदिर की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि देवर्षि नारद जी ने इस मंदिर में साल के 364 दिन भगवान नारायण की भक्ति की थी। इसी कारण से मनुष्यों के लिए इस मंदिर के पट केवल वर्ष में एक ही दिन रक्षाबंधन वाले दिन खुलते हैं। आम मनुष्य किसी एक दिन इस मंदिर में जाकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।

कथा के अनुसार एक बार भक्त प्रहलाद जी के वंशज राजा बलि ने भगवान विष्णु से यह आग्रह किया था की वे जिस भी द्वार से निकले उन्हें उनके दर्शन हों, तो भगवान विष्णु उनके द्वारपाल बन गए। भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को सहृदय स्वीकार किया, और राजा बलि के साथ उनके लोक पाताल लोक को चले गए।

कई दिनों से भगवान विष्णु के दर्शन ना होने के कारण माता लक्ष्मी बहुत ही परेशान हो गई और वे देवर्षि नारदजी के पास गई और उनसे भगवान विष्णु का पता पूछा इतने दिनों से भी कहां है। माता लक्ष्मी को चिंतित देखकर देवर्षि नारद जी ने उनसे पूरी बात कही और बताया कि भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं। देवर्षि नारद जी से ऐसा सुनकर माता लक्ष्मी ने उनसे कहा, “हे मुनिवर मैं पाताल लोक जाने का रास्ता नहीं जानती हूं कृपया मुझे वहां तक लेकर चले”। 

देवर्षि नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक जाने को तैयार हो गए तथा भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय भी बताया। उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध दें तथा जब वह कुछ मांगने को कहे तो बदले में आप उनसे उनका द्वारपाल मांग ले।

अपने पति को मुक्त कराने के लिए माता लक्ष्मी देवर्षि नारद जी के साथ पाताल लोक पहुंच गई और राजा बलि की कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त कराया। जिसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के जार पुजारी ने श्री वंशी नारायण की पूजा की। उसी समय से यह परंपरा चली आ रही है कि केवल एक ही दिन यहां मनुष्य पूजा कर सकते हैं बाकी के 364 दिन देवर्षि नारद यहां भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।

रक्षाबंधन वाले दिन कल कोट गांव के प्रत्येक घर से भगवान वंशी नारायण के लिए माखन आता है। इसी मक्खन से यहां प्रशादी तैयार की जाती है। इस दिन भगवान को स्नान आदि करा कर उनका दिव्य वस्त्रों और आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है। इसके पश्चात कालगोठ गांव के लोग भगवान वंशी नारायण को रक्षा सूत्र बांधते हैं। मंदिर में पूजा करने का वाले पुजारी क्षत्रिय होते हैं।

वंशी नारायण मंदिर की विशेष बात

चमोली जिले के उर्गम घाटी में स्थित यह मंदिर कातयूरी शैली में बना हुआ है जो कि 10 फीट ऊंचा है, जिसका गर्भगृह भी वर्गाकार है। इस मंदिर में भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज रूप में विद्यमान हैं और सबसे खास बात ये है कि इस मंदिर की प्रतिमा में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों के ही दर्शन होते हैं।

इस वंशी नारायण मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी स्थित हैं। भगवान वंशी नारायण मंदिर की आसपास की फुलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के पुष्प पाए जाते हैं।

कैसे पहुंचे श्री वंशी नारायण मंदिर

ये मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले की उर्गम घाटी में कल्पेश्वर महादेव मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर और देव ग्राम से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 12 किलोमीटर का रास्ता हमें पैदल ही तय करना पड़ता है।

उत्तराखंड में उर्गम घाटी को उसकी प्राकृतिक और आध्यात्मिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। इस स्थान पर ही भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में से एक कल्पेश्वर मंदिर जोकि पंच केदारों में से एक प्रसिद्ध केदार है। ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग पर स्थित हेलंग, वो स्थान है जहां से उर्गम घाटी पहुंच सकते हैं। उर्गम से कल्पेश्वर तक का 2 किलोमीटर का आसान रास्ता है।

वंशी नारायण मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क द्वारा ऋषिकेश से जोशीमठ की दूरी लगभग 255 किलोमीटर है। फिर जोशीमठ से हेलंग घाटी लगभग 10 किलोमीटर दूर है। हेलंग से उर्गम जीप या फिर कार द्वारा जाया जा सकता है और फिर उर्गम से पैदल ही देवग्राम पहुंचते हुए श्री वंशी नारायण मंदिर पहुंच सकते हैं। हेलंग से उर्गम की यात्रा करते वक्त रास्ते में अलकनंदा और कल्पगंगा नदियों का सुंदर संगम देखने को मिलता है।

ये एक ऐसा सुंदर और भव्य स्थान है एक बार जाना तो बनता है। ये देखना बहुत ही रुचिकर होगा कि यहां कौन कौन सी प्रजाति के दुर्लभ पुष्प खिलते हैं। दो नदियों का सुनहरा संगम यहीं देखने को मिलता है। वर्ष में केवल एक दिन आम मनुष्यों को दर्शन के लिए खुलने वाला इस मंदिर में आखिर भगवान की कैसी चतुर्भुज रूप में प्रतिमा विद्यमान है।


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