जिस तरह हर देश की परंपरा और कला उसकी सांस्कृतिक विरासत होते हैं, ठीक उसी तरह उत्तराखंड की पारंपरिक कलाएं भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अनूठा प्रतिबिंब है।
वही इन कलाओं में सबसे पहला स्थान संगीत को मिला है। आपको बता दें कि ये उत्तराखंड का अद्भुत संगीत ही है जिसने इस देवभूमि की विश्व भर में एक अलग पहचान बनाई है।
यही नहीं आदि काल से ही नृत्य और संगीत को देवताओं को प्रसन्न करने का एक माध्यम समझा जाता था। शायद एक ये भी कारण है कि इसी कारण से कला की धनी उत्तराखंड भूमि को देवताओं की भूमि भी कहा जाता है।
उत्तराखंड में अधिकतर जो कलाएं हैं वो देवताओं की पूजा- अर्चना और कहानियों सिर्फ प्रेरित नजर आती हैं। आपको बता दें कि इसमें रामायण से प्रेरित होकर “रम्माण”, महाभारत से प्रेरित होकर “चक्रव्यूह” और पांडवों से प्रेरित होकर “पांडव नृत्य” आया।
उत्तराखंड में बसने वाली ये कला यहां की पहचान ही नहीं अपितु भारत की बहुमूल्य संस्कृति की एक अमित कहानी है। यही नहीं इसी कारणवश इनमें से कुछ को यूनेस्को ने ‘विश्व धरोहर’ घोषित किया, इसमें नृत्य “रम्माण उत्सव” और “जागर” शामिल है।
पारंपरिक लोक गीत और संगीत है उत्तराखंड की शान
उत्तराखंड में ऐसे बहुत से पारंपरिक लोकगीत और संगीत का आयोजन समय-समय पर किया जाता है। यही नहीं लोग ऐसे कई आयोजनों में हिस्सा भी लेते हैं।
इससे काफी समय से चली आ रही लोकगीत की परंपरा को जीवित रखने में सहायता मिलती है। आपको बता दें कि कई ऐसे लोकगीत हैं जो सामाजिक कार्य के अलग-अलग अवसरों पर भी गाए जाते हैं।
वहीं कुछ ऐसे खास लोकगीत व संगीत हैं जिनके बारे में जानना आवश्यक है। तो आइए जानते हैं उनमें से कुछ का नाम:
- छोपाटी: ये वो प्रेम गीत है जिसे प्रश्न और उत्तर के रूप में पुरुष एवं महिलाओं द्वारा गाया जाता है।
- चौन फूला एवं झुमेला: चौन फूला एक नृत्य है और झुमेला एक तरह का गायन। दरअसल झूमेला जब एक श्री द्वारा गाया जाता है तब उसी पर चौन फूला नृत्य किया जाता है।
- बसंती: जब बसंत ऋतु का आगमन होता है तो इस के अवसर पर गढ़वाल पर्वतों की घाटियों पर नए पुष्प खेलते हैं तभी बसंती लोक नृत्य को गाया जाता है। इन्हें अकेले या समूह में किया जाता है।
- मंगल: मंगल गीतों को शादी विवाह जैसे समारोह के अवसर पर गाया जाता है। ये मूलतः पूजा गीत होते हैं जिन्हें संस्कृत के श्लोकों में गाया जाता है।
- पूजा लोकगीत: दरअसल यह लोकगीत पारिवारिक देवताओं की पूजा के लिए गाए जाते हैं ताकि अपदूतों से ईश्वर मानव समुदाय की रक्षा करे।
- जग्गार: इसे कभी-कभी लोक नृत्य के साथ गाया जाता है जिसका सीधा संबंध भूत एवं प्रेत आत्माओं की पूजा से है। साथ ही कभी-कभी जागर देवी देवताओं के सम्मान में पूजा लोकगीतों की तरह भी गाया जाता है।
- बाजुबंद: दरअसल यह लोकगीत चरवाहों के बीच प्रेम और बलिदान का प्रतीक माना जाता है। साथ ही ये पुरुष और स्त्री या फिर बालक और बालिका के बीच प्रेम को प्रदर्शित करने के रूप में गाया जाता है।
- खुदेड़: ये एक तरह का लोकगीत है जो अपने पति से प्रथक हुई महिला के दर्द का बखान करता है। इसमें पीड़ित महिला अपशब्दों का प्रयोग कर उन परिस्थितियों का वर्णन करती है।
- छुरा: ये लोकगीत चरवाहों के द्वारा गाया जाता है। इन गीतों के माध्यम से वृद्ध व्यक्ति भेड़ बकरियों को चराने के अपने अनुभव को छोटे बच्चे से साझा करते हैं।
उत्तराखंड के कुछ पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र
उत्तराखंड का संगीत संपूर्ण संगीत जगत के लिए एक धरोहर है। वही आपको बता दें कि इस देवभूमि में कई ऐसे पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र भी है जिनके बारे में काफी कम लोग जानते हैं। तो आइए कुछ ऐसे ही पारंपरिक संगीत वाद्य यंत्रों के बारे में जानते हैं:
- ढोल
- मुशक बीन या बैगपाइप
- हुरका
- दम्मा
- बिनई
- मुरुली या बांसुरी
- तुरतुरी या तुरही (Turturi या turhi)
उत्तराखंड के संगीत को जन-जन पहुंचाने के लिए लोकगीत गायकों की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। आपको बता दें कि उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से युवा प्रतिभाओं की इसमें एक बड़ी भूमिका रही है।
इसमें ललित मोहन जोशी, गजेंद्र राणा, कल्पना चौहान, अनुराधा निराला, मंगलेश डंगवाल और दीपक चमोली जैसी कई मशहूर हस्तियां शामिल है।
उत्तराखंड के संगीत जगत के उभरते युवा कलाकार
प्रियंका मेहर (Priyanka Meher)
उत्तराखंड के संगीत को जन जन तक अपनी खूबसूरत आवाज में पहुंचाने का काम प्रियंका मेहर कर रही है। इन्होंने अपनी सुरीली आवाज के माध्यम से लाखों-करोड़ों दिलों में अपनी पहचान बनाई है।
संगीत परिवार से आने वाली प्रियंका ने उत्तराखंड के पारंपरिक संगीत को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का काम किया है जोकि सराहनीय है। इन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बिनाह पर यूट्यूब के माध्यम से उत्तराखंडी गीतों को पूरे विश्व तक पहुंचाया है।
श्रद्धा शर्मा (Shraddha Sharma)
उत्तराखंड के देहरादून में जन्मी श्रद्धा शर्मा एक प्रसिद्ध गायक हैं। इन्होंने अपने करियर की शुरुआत यूट्यूब के द्वारा की। जब ये 15 साल की थी तब इन्होंने अपना पहला वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया था और ये “मुख्य तेनु समझौता” गीत का एक कवर सोंग था।
आपको बता दें यूट्यूब पर श्रद्धा का एक अलग ही फैनबेस है। यूट्यूब पर इनके आधिकारिक तौर पर 300k से ज्यादा फॉलोअर हैं जो इनके गीतों को पसंद करते हैं।
रूहान भारद्वाज (Ruhaan Bharadwaj)
ये उत्तराखंड के देहरादून के एक युवा और प्रतिभाशाली संगीतकार है। आपको बता दें कि एक संगीत प्रेमी परिवार से आने वाले रूहान भी अपनी आवाज के माध्यम से जन जन तक संगीत का तोहफा पहुंचा रहे हैं।
इन्होंने बॉलीवुड में भी गाने गाए हैं साथ ही अपनी मंत्र मुक्त कर देने वाली आवाज और प्रदर्शन के लिए इन्हें दुनिया भर से काफी सराहना मिली है। इसके अलावा यह कई तरह के संगीत वाद्ययंत्र भी बचा सकते हैं। वहीं यूट्यूब में इनके लगभग 381K सब्सक्राइबर्स हैं।
उत्तराखंड के प्राचीन संगीत के इतिहास को देखा जाए तो वो पूरी तरह परंपरागत लोक गीत और संगीत का ही हिस्सा था। लेकिन आज के समय में जिस तरह संगीत जगत में कई तरह के बदलाव आए हैं उसके बाद भी कुछ ऐसे कलाकार हैं जो उत्तराखंड के पारंपरिक संगीत को नए ढंग से लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
समय के साथ संगीत में बदलाव जरूर हुआ है लेकिन आज भी लोग अपने इतिहास को अपने हृदय में संजोए हुए हैं।